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________________ ____- अथ श्री संघपट्टका - (२५७) www.vr M - निंदित नहि होय. एतो अतिशय निंदा थवानोज प्रसंग डे केमजे लौकिक शास्त्र पण एम कहे जे जे पुत्र, पशु, बांधव तेमना सहित जो नरकमां जवानी ना होय तो देवने विषे तथा ब्राह्मणने विषे अधिकार कर ने वळी जो तारी नरकमां जवानी मति होय तोएक वरस सुधी पुरोहितपणुं कर ने वळी ते करतां ए सर्वे नरकमां जवानां साधन- शुं प्रयोजन के एक त्रण दिनसुधी मठपतिपणुं कर. जेणे करीने कुटुंब सहित नरकनी प्राप्ति शीघ्र थाय इत्यादि महा निंदितपणुं अन्य दर्शनमां पण . . . टीका:-इदानीं निगमयति ॥ इतियस्मादर्थे यस्मात् एव मित्युक्तकमेण व्रतवैरिशी चारित्रप्रतिपंथिनी इतिहेत्वार्थो जिक्रमासचाने योदयति॥ ममतां अर्थादिषुवीकारबुद्धिः इति तस्मा तो नयुक्ता नोपपन्ना मुक्त्यर्थिनां निर्वाणानिलाषिणां मुनीनामिति वृत्तार्थः ॥ अर्थः-हवे ए वातनी समाप्ति करता सता कहे जे इति शब्दनो एवो अर्थ करवो, एटले जे हेतु माटे पूर्वे कह्यो एक्रम थकी चारित्रनी वैरी एटले नाश करनारी ममता ने एंटले अव्यादिकनो अंगिकार करवानी बुद्धि ए प्रकारनी के. ए हेतुमाटे मुक्तिना वांटक मुनिने ए ममता करवी युक्त नथी, एम ए काव्यनो अर्थ बे. टीकाः-सांप्रत मसंयमादिदोषप्रदर्शनेनाप्रेक्षिताद्यासन . प्रारं निराकर्तुमाह ॥
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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