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________________ (२३६) - अथ श्री संघपट्टका गमर्नु थापन कर्यु ते पण ते तमारं लिंगधारीनुं जितने सिक करनार नथी, केम जे ए आगमनो तो बीजो अर्थ बे, पण साधुने गृहस्थनो परिग्रह करवो एम सिद्ध करनार 'जास्सहिए था. गम वचनथी तारे शंसिक करनार ले तो ए के गणधरा दिकना शिष्य । तेमने बीजा गणधरादिकना शिष्य तेमनो परिग्रह करवा विषे ए आगम वचननो अर्थ . टीकाः तथाहियाकाचिद्यस्य गणधरशिष्यप्रतिशिष्यादेः स्थितिः प्रतिक्रमण वंदनादौ न्यूनाधिकक्षमाश्रमणदानादि . लक्षणासमाचारी याच यस्य संततिगुरुपारंपर्येकालाचनादिदान • विषयः संप्रदायःयाच पूर्वपुरुषकृता गणधरा दिप्रवर्तिता मर्यादा • गच्छव्यवस्था तामनति ऋमिननंतसंसारिको न नवतीति ।। अर्थः-तेज स्पष्ट करी देखा जे के जे जे कोइ जे गणरना शिष्य प्रतिशिष्य आदिकनी स्थिति एटले प्रतिक्रमण वंदनादिकने विषे न्यून तथा अधिक खामणां देवा इत्यादि लक्षण समाचारी , तथा जेनी जे संतति एटले गुरु परंपराये आलोयराबा. दिक देवाने विषे संप्रदाय . वळी जे पूर्व पुरुष करेली तें गणधर आदिके प्रवर्तावली मर्यादा एटले गनी व्यवस्था तेनुं नवधन जे नथी करता ते अनंत संसारी नथी थता. . टीका:-अत्राहि गणधरशिष्यादीनां स्वस्वगुरुप्रदर्शित स्थित्याद्यतिक्रमेंऽनंतसंसारितापत्या प्रतिनियतगणधरपरिग्रह विषयत्वमवसीयते ॥ श्रावकाणांतु सर्वधार्मिकग विशेषणं
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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