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________________ (२३) अथ श्री संघपट्टकः जवान स्त्री ना संबंध सहित निवासने धार्मिक निवास ऍ बेनी प्राप्तिये सते धाकर्मिक निवासतुं ग्रहण करवुं ॥ एज वचन चैत्यवासनो निषेध करे बे ॥ ने जो एम न होय तो आधाकर्मादि दोष रहित नवासनि प्राप्तिः थये बते जे श्राधाकर्मिक नि वासनुं ग्रहण कर क ते न कहेत ॥ वळी स्त्रीधोना संबध सहित निवास ने धार्मिक निवास ते बेनी पेठे जवान स्त्रीमना संबंध सहित निवास ने चैत्यवास ए बेमांथी एकनो निर्धार कारण बते पण कोइ आगममां प्रतिपादन कर्यो नथी. टीका: यद्यपि ग्रामाद्यंतर्वसंझिरित्यादिनाऽधुना जिनगृह वासस्यास्मीचीनतापादनं तदप्यज्ञान विजूभितं ॥ जवदजिमतेजिन सदनवास पक्षेप्य धिकतर विवक्षितदोषसद्भावात् ॥ I अर्थ:-वळी जे तमे ग्रामादिकना माही बसताने ॥ एव चनथी आरंभीने दालमां जिन घरवास करवो ए ठीक बे- ए.प्रकारे कयुं ते पण तमारा अज्ञाननुं प्रकाशपणुं वे. केमजे तमे मान्यों ने चैत्यवास ते पक्षमां पण आगळ अमे कहीशुं एवा अतिशय अधिव दोषतुं विद्यमानपएँ बे माटे ॥ टीका:- तथाहि प्रत्यहं भगवत्पुरतः शृंगार सार गायन्नृत्य द्वारांगनां गनंगा पांग निरीक्षण स्तनतटाव लोकनादिना तंत्र' वसतामिदानीं तनमुनीनांकथं सातिरेका मन्मथ विकारांगांरांन दीप्येरन् ॥ ततश्चेद मुपस्थितं यत्रोज्जयोः समोदोषः परिहारश्च तादृशः । नैकःपर्यनुयोक्तव्यं स्ताकशार्थ विचारणे ॥
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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