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________________ - अय श्री संघपट्टका - .१.१५ Airwwwwww - स्त्रीओना संबंध सहित जे निवास तेनी अपेक्षाए कत्यु एम जाणो. टीकाः-अन्यथा पुरुषाकीर्णबालवृद्धस्त्रीसंसक्तवसत्यपेक्षा याऽधाकर्मिक वसतिवर्जना निधानस्य वैयर्थ प्रसंगात् ॥ यदुक्तं ॥ . अहवा पुरिसाइना नायायाराय जीयपरिसाय ॥ बालासु य ' वृद्वासु य नारीसु य वज्जए कम्मं ॥ अर्थः ॥ एम जो न होय एटले जवान स्त्रीओना संबंध सहित निवासना त्याग करयो एम जो अभिप्राय न होय तो जे निवास पुरुष युक्त होय बाल अथवा वृद्ध स्त्रीओना संबंधिसहत । निवास होय तेनी अपेदाए आधाकर्मिक निवासनो त्याग करवानुं जे.कडं तेने व्यर्थ थवनो प्रसंग थशे ए हेतु माटे.॥ ते शास्त्रमा कह्यु जे. • टीका:-किंच उन्नय प्राप्तावाधाकर्मिकवसति ग्रहणमेव चैत्यवासं निषेधयति ॥ अन्यथा आधाकर्मादिदोषविकलसजावे आधार्मिकवसतिग्रहणं नाचवीत ॥ तथा स्त्रीसंसक्ताधाकर्मिकवसत्योरिव स्त्रीसंसक्तवसतिजिन गृहयोरेकतर निर्धारणस्यागमे कारणेपि क्वचिदप्रतिपादनात् ॥ अर्थः-वकी वे प्रकारना निवासनी प्राप्ति थये बतें ॥ एदसे
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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