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________________ % A 8. अथ श्री संघपष्टक - (२०५) ते प्रकारना निवासनो लान नथाय ए हेतु माटे अपवादरूप तेनेज प्रतिपादन कर्या बे. टीकाः-अयमर्थः॥ निशीथेहि पूर्वमौत्सर्गिका वसतिन्जेदा यतिनिवासयोग्यत्वेन प्रतिपादिताः यथा मूवुत्तरगुण-सुझं थीपसुपंकगविवङियं वसहि, सेविज सबकालं विवजए डंति दोसाॐ ॥ विजिन्ना खुड्डलिया पमाणजुत्तान तिविहवसहि ॥ पढमबियासुदाणे ॥ तत्थय दोसा श्मे हुँति ॥ अर्थः-श्रा स्पष्ट अर्थ जे जे निशीथ सूत्रमा प्रथम साधुने रहेवा योग्य निवासना नेद नसर्ग मार्गे प्रतिपादन कर्या . जे मूल गुण तेणे करीने शुद्ध स्त्री तथा पशु तथा नपुंसक तेणे रहित ए प्रकारना निवासने सर्व काले सेववो ने जो दोष होय तो ते निवासनो त्याग करवो. टीकाः-साध्वीरुद्दिश्योदिता ॥ गुत्तागुत्तदुवारा कुलपत्ते सत्तिमंतगंजीरे ॥ नीयपरिसमद्दविए अजासिझायरे जणिए ॥ घणकुड्डा सकवामा सागारियन्नगिणिमाइपेरता ॥ निप्पञ्चवायजोगा विबिन्नपुरोहमा वसही ॥ वळी साध्वी नद्देशीते का बे जे टीका:-तदलाने पश्चात्ता एवापोदिताः ॥ यथा ॥ अन्य प्रतिवसायामपि वसतौ कारणेन वस्तव्यं ॥ तथाचाह ॥श्रद्धा
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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