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________________ MARAM (२०४) 4. अथ श्री संघपट्टकर सहित होय ने शुं एस डे केम जे अपवाद मार्ग धारण करे , पु प्रकारना वचनथी नत्सर्ग तथा अपवाद ए बे पदनो इंछ समास करवो त्यार पली नाना प्रकारना निवासस्थान आदिकने विषे जणाताले उत्सर्ग अपवाद कहेतां सामान्य विशेष विधि जेने विषे एवं सूत्र ने. टीका:-शिवपुर्य्या निःश्रेयसनगऱ्या दूतजूतःसंदेशहरसहशस्तत्र नूतशब्दस्यात्रसदृशवाचित्वात् ॥ तेनायमर्थः ॥ यथा कश्चित्परराजदौवारिकादिः कस्यांचितपुरिप्रविविकुस्तत्पृथ्वीपतिसंदिष्टदूतनणितेन प्रवेशं प्राप्नोति तथा यतिरपि निःश्रेयसपुरे निशीथप्रतिपादितविधिनेतिप्राक् प्रथमं नक्त्वा प्रतिपाद्य जूरिजेदाः प्रजूतप्रकारा गृहिगृहवसतीग्रुहस्थसदनरूपोपाश्रयान् पश्चाचरमकारणे तथा विधवसत्यलानलकणे हैतो श्र. पोद्य अपवादविषयीकृत्य ताएवेति गम्यते ॥ अर्थ:-वळी निशीथ सूत्र मोदनगरीना दूत जेवू दे. भूत शब्द आ जगाए सदृश वाची ने तेणे करीने का अर्थ थयो. जेमः कोइक परराजानो द्वारपाळ होय, तेम कोश्क नगरीमा प्रवेश करवा. श्वतो पुरूष ते पृथ्वीपति राजाए आज्ञा आपेला दूतना कहेवाथी ते नगरीमा प्रवेश पामे जे तेम यति पण मोक्षपुरीमा, निशीथ सत्रमा प्रतिपादन करेला विधिये करीने प्रवेश करे जे माटे मोक्षः पुरीना दूत जेवू निशीथ सूत्र कह्यं तेमां प्रथम घणा प्रकारनां गृहस्थनां घररूपी उपाश्रय प्रतिपादन कर्या ने पढ़ी बेला कारणमां
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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