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________________ wwwwwwwwwwwwwwwwww जब श्री संघपट्टिका - १ मोक्षपदने प्राप्त थया बे. माटे प्रथम विकल्पमां कही जे आशातना तनो संलव नथी; ते तुं अयुक्त बोले डे केम जे जगवान मुक्तिए गया , तोपण तेमनी प्रतिमा विषे, ते जगवानना गुणनो आरोप करीने नगवत् रुपे करीने निश्चे करवायी जेम नक्ति उत्पन्न याय ने तेमज आशातना उत्पन्न थवानो पण संलव डे, ने जो एम नकहीए तो जगवंत मुक्ति गया , तेमनी अहीं नक्ति करवाथीन. गवंतने मुक्तिमां का विशेष यतुं नथी. माटे नक्तिनी पण अ सिद्धि प्राप्त थई एटले नक्ति पण तारे मते न करवी जोइए, तेतो तुं माने डे ने आशातना केम मानतो नथी. __टीकाः-तत्प्रतिमानक्त्यन्नक्तिमतामुपकारापकारयोर्बहुधागमे श्रवणाच ॥ अतएवासन्नावस्थाना दिना नगवत्याशातना सिद्धेस्तकेतुकश्चैत्यवासप्रतिषेधः पूर्वपक्षपुरःसरं सिझांते निरचायि ॥ यथाह ॥ जातित्थयराण कया बंदणमावरिसणापाहुमिया ॥ नती सुरवरेहिं समणाण तहिं कहिं जणियं _अर्थः-वळी आगममां जगवाननी प्रतिमानी जे नक्ति तथा अन्नक्ति तेना करनारने उपकार तथा अपकारनुं बहुधा सांनळवा पणुं , एटले नगवतनी प्रतिमानी नक्ति करनारले उपकार थयो ते तथा अन्तक्ति करनारने अपकार थयो ते वे शास्त्रमा संजळाय है, एज कारण माटे समीपनिवास आदि करवाथी नगवानने विषे आशातनानी लिहिले. ते आशातनान कारण जे चैत्यवास तेनो निषेध सिद्धांतने विवे पूर्वपक्षप्रगट करोने घणोजे चरव्यो ले ते को ले..
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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