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________________ wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwantanama AAAAAlim - अथ श्री संघपट्टका (११६ ) अर्थः-हवे बीजे प्रकारे श्राधाकर्म शब्दनो श्रर्थप्रगट करतां जयने उत्पन्न कर तेणे करीने ए श्राधाकर्म जोजन अवश्य त्याग करवा योग्य डे एम देखामे . यथा शब्दनो प्रकार एटलो अर्थ करवो, एटले जे प्रकारे जे नोजनने जमीने मुनि संयमथी हेग्ल थाय (ज्रष्ट थाय ) अथवा अधोगति (नरकने) पामे वे एणे करीने श्राधाकर्म शब्दना बे अर्थ प्रगट करता जे प्रकरणना कर्ता तेणे बीजा पण बे अर्थ सूचना कर्या ले. टीका:-यथात्मन्नमिति ॥ श्रात्मकर्मेतिच॥ तत्रात्मानं चारित्रात्मानं हंति श्रात्मन्नं ॥ श्राधाकर्मनोजिनो हि तावत्पाकारंजानुमत्यादितिश्चारित्रात्मा हन्यते॥ तथा श्रात्मनि कर्म श्रात्म कर्म आधाकर्म । परिणतो हियति रेषणीयमपि गुह्णन् गृहिणा -स्वार्थ पाकारंजादि यस्कर्म निर्तितं तदहोमत्कृते शोजनामद मनं निष्पन्न मिति परितोषादात्मनि निवेशयति तेन च बध्यत इतिनवत्यात्मकर्म । अर्थः-ते कहे जे जे एक तो श्रात्मन ने बीजो श्रात्मकर्म, 'तेमां चारित्र रुपी श्रात्माने हणे माटे आत्मन्न कहीए. केम जे श्रा'धाकर्म जोजिनो चारित्र रुपी आत्मा ते पाकना आरंजनी अनुमोदना करवी इत्यादिकवने हणाय ने. वली श्रात्माने विषे जे कर्म ते श्रात्मकर्म कहीए. केम जे आधाकर्म ग्रहण करवा तत्पर थयो जे यति ते एषणीय जोजन- ग्रहण करतो सतो पण गृहस्थे पोताने अर्थे पाकादि जे काश् आरंज कर्म नीपजाव्यु तेने एम माने ले जे अहो आ गृहस्थे मारे अर्थे सारं श्रन्न नीपजाव्यु एम मानीने घणा संतोषथी (आनंदथी) पोताना श्रात्माने विषे तेनो
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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