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________________ (१०८) ___ अथ श्री संघपट्टका , अर्थः-एवी रीते दश प्रकारनो धर्म प्ररुपण करनार ते निगुग आ कालना वेषधारी तेने विष मुनि शब्द केम प्रवर्ने ? केम जे मुनि शब्द तो गौतमादि महान् पुरुष तेने विषे प्रवलो ने माटे त्यां उत्तर कहे जे जे जेम लिंब आदि वृक्षनेविषे कल्प वृदना गुण नथी, तो पण केवल रुढीथी तरु ए प्रकारनो शब्द प्रवर्ने बे. तेम ते लिंगधारीने विषे मुनि शब्दनी प्रवृत्ति रुढीथी . टीकाः यथाच जात्यरत्नानां गुणानावे पितादृशां ॥ का.. च सांझां शुचिर्चिक्ये मणी शब्दः प्रवर्तते ॥३॥ गौतमादि गुणायोगे-पीदानींतन साधुषु ॥ ज्यच्छत्सु स्वशक्यैवं प्रवर्त्यति यति ध्वनि ॥४॥ इति वास्तवक्षात्यादि दशविधयतिधर्म स्पर्द्धयेव यथादेः प्रदर्शितो धर्मः अयं चेत्कर्महरो जवेदित्यादि पूर्वव्याख्यातमिति वृत्तार्थः ॥ ५॥ अर्थः-वली जेम जातिवंत रत्नना गुण न होय, तो पण काचना ककमानो घणा किरणनो चकचकाट ले तेने विषे 'मणी शब्द प्रवर्ने बे. तेम ते लिंगधारीने विषे मुनि शब्द प्रवर्ने २ ॥ गो. तमादि मुनिने विषे रह्या जे गुण ते गुण आ कालना साधुने विषे नथी तो पण पोतानी शक्तिये उद्यम करनारने विषे यति शब्द प्रवर्तशे ॥ ४॥ए प्रकारे साचो जे क्षमाआदि दश प्रकारनो यति धर्म तेनी स्पर्काये जाणे शुं लिंगधारीनए देखायो जे धर्म था जो कर्मने हरे तो मेरु समुसमां तरे इत्यादि पूर्वे व्याख्यान कयु ए प्रकारे पांचमा काव्यनो अर्थ थयो ॥५॥ . . . ... ...
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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