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________________ तीर्थङ्कर' . . का त्याग कर पूर्ण संयमी बन गये । दीक्षा के समय आप को वेले का तप था । छह महीने तक कठोर साधना करते हुए आपने धनमाती कर्मों को क्षय किया और चैनःशुक्ला पूर्णिमा के दिन चित्रा नक्षत्र के योग में केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त किया। i - केवलज्ञान प्राप्त कर, आपने चार तीर्थ की स्थापना की। मापने अपने तीर्थ प्रवर्तन के समय अनेक भव्य प्राणियों का उद्धार किया। आपने सोलह पूर्वाङ्ग कम एक लाख पूर्व तक संयम पर्याय का पालन किया । इस प्रकार कुल तीस लाख पूर्व का आयुष्य भोग कर मार्गशीर्ष कृष्णा एकादशी को चित्रा नक्षत्र में एक मास की संलेखना पूर्वक आप समेतशिखर पर ३०८ मुनियों के साथ सिद्धगति को प्राप्त हुए। भगवान के सुव्रत भादि १०७ गणधर, ३३०००० साधु, ४२०००० सावी, २३०० चौदह पूर्वधर, १०००० अवधिज्ञानी, १०३०० मनःपर्यवज्ञानी, १२००० केवलज्ञानी, १६१०८ वैक्रिय लब्धिधारी, ९६०० वादलब्धि सम्पन्न, २७६००० श्रावक एवं ५०५००० श्राविकाओं का परिवार था। भगवान सुमतिनाथ के निर्वाण के वाद ९० हजार करोड़ सागरोपम बीतने पर भगवान पद्मप्रभ निर्वाण को प्राप्त हुए । ७. भगवान सुपार्श्वनाथ धातकीखण्ड द्वीप के पूर्व विदेह में 'क्षेमपुरी' नामकी रमणीय नगरी थी। वहाँ 'नंदिषेण' नाम के प्रतापी राजा राज्य करते थे। वे वड़े धर्मात्मा थे । धर्ममय जीवन व्यतीत करने के कारण उन्हें संसार के प्रति विरक्ति होगई । उन्होंने 'अरिमर्दन' नामक स्थविर आचार्य के पास प्रव्रज्या ग्रहण की। उत्कृष्ट भावना से तप और संयम की साधना करते हुए 'नदिषेण' मुनि ने तीर्थङ्कर नामकर्म का उपार्जन किया। अन्तिम समय में सलेखना-संथारा करके समाधि पूर्वक देह का त्याग
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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