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________________ आगम के अनमोल रत्न में न रहे । इस प्रकार भगवान की कुल आयु चालिस लाख पूर्व की थी। भगवान 'अभिनन्दन' के निर्वाण के पश्चात नौलाख करोड़ सागरोपम बीतने पर सुमतिनाथ भगवान मोक्ष में पधारे ।। ६. भगवान पद्मप्रभ धातकीखण्ड द्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र के वत्स , विजय में 'सुसीमा' नाम की नगरी थी । वहाँ 'अपराजित', नाम के शूर वीर राजा राज्य करते थे। उनके राज्य में सारी प्रजा सुख पूर्वक निवास करती थी। एक बार अरिहंत भगवान का नगरी में आगमन हुआ । राजा भगवान के दर्शन करने गया और उनकी वाणी सुनने लगा। भगवान की वाणी सुनकर उसे वैराग्य हो गया । उसने अपने पुत्र को राज्य गद्दी पर बिठला कर उत्सव पूर्वक भगवान के समीप दीक्षा ग्रहण कर ली । दीक्षा ग्रहण करने के बाद उत्कृष्ट तप संयम की भाराधना करते हुए उसने 'तीर्थकर' नामकर्म का उपार्जन किया । अन्तिम समय में संलेखना पूर्वक देह का त्याग कर वह सर्वोच्च अवेयक में महान ऋद्धि सम्पन्न देव बना । वत्सदेश की राजधानी कोशांबी थी । वहाँ के शासक का नाम 'धर' था। महाराज 'घर' की रानी का नाम 'सुसीमा' था । अपराजित मुनि का जीव देवलोक का आयुष्य पूर्ण करके चौदह महास्वप्न पूर्वक, माघ कृष्णा छठ की रात्रि में, चित्रा नक्षत्र मे महारानी 'सुसीमा' की कुक्षि में उत्पन्न हुआ । गर्भ काल पूरा होनेपर कार्तिक कृष्णा द्वादशी को चित्रा नक्षत्र के योग में भगवान का जन्म हुआ । जन्मोत्सव आदि तीर्थङ्कर परम्परा के अनुसार हुआ । गर्भ में माता को 'पद्म' की शय्या का दोहद होने से बालक का नाम पद्मप्रभ रक्खा गया । युवावस्था में भगवान का विवाह हुमा । साढ़े तोन लाख पूर्व तक युवराज रहकर ' फिर भगवान का राज्यारोहण हुआ। साढ़े इक्कीस लाख पूर्व और १६ पूर्वाङ्ग तक राज्य संचालन किया। इसके बाद कार्तिक कृष्णा तेरस को चित्रा नक्षत्र के योग में संसार
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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