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________________ तीर्थङ्कर चरित्र गर्भकाल पूर्ण होनेपर माघ शुक्ला द्वितीया के दिन जब चन्द्र अभिजित नक्षत्र में आया तव महारानी ने पुत्र रत्न को जन्म दिया । वालक का वर्ण सुवर्ण जैसा था, और वानर के चिह्न से चिहित था । वालक के जन्मते ही समस्त दिशाएँ प्रकाश से जगमगा उठीं । इन्द्रों के आसन चलायमान हुए । इन्द्र, देव, देवियों ने मेरु पर्वत पर भगवान का जन्मोत्सव किया । जब भगवान गर्भ में थे तब सर्वत्र आनन्द छा गया था इसलिए माता पिता ने बालक का नाम 'अभिनन्दन' रखा। अभिनन्दनकुमार युवा हुए । उनका अनेक श्रेष्ठ राजकुमारियों के साथ विवाह हुमा । साढ़े बारह लाख पूर्व तक कुमारावस्था में रहने के बाद भगवान का राज्याभिषेक हुआ। आठ अंग सहित साढ़े छत्तीस लाख पूर्व तक राज्यधर्म का पालन किया । एक बार संसार की विचित्रता का विचार करते हुए आपको वैराग्य उत्पन्न हो गया । उस समय लोकान्तिक देव श्री भगवान के पास उपस्थित हुए और लोक कल्याण के लिए भगवान से दीक्षा लेने की प्रार्थना करने लगे। भगवान ने नियमानुसार वार्षिक दान दिया। माघ शुक्ला ११ के दिन अभिजितनक्षत्र में इन्द्रों के द्वारा तैयार की गई 'अर्थसिद्धा' नामकी शिविका पर आरूढ़ होकर 'सहस्राम्र' उद्यान में पधारे । वहीं एक हजार राजाओं के साथ भगवान ने प्रव्रज्या ग्रहण की । परिणामों की उच्चता के कारण भगवान को उसी क्षण मनःपर्ययज्ञान उत्पन्न हो गया। दीक्षा के समय भगवान ने छठ की तपस्या की थी। दूसरे दिन अयोध्या नगरी के राजा इन्द्रदत्त के घर परमान्न (खीर) से पारणा किया । उनके प्रभाव से वसुधारादि पांच दिव्य प्रकट हुए । अठारह वर्ष तक छद्मस्थ अवस्था में विचरण कर भगवान भयोध्या नगरी के सहस्राम्र उद्यान में पधारे । वहाँ षष्ठ तप कर शाल वृक्ष के नीचे ध्यान करने लगे। शुक्ल ध्यान की परमोच्च स्थिति में भगवान ने धाति कर्मों को क्षय कर केवलज्ञान और केवलदर्शन
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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