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________________ तीर्थकर चरित्र ___ भगवन् ! बुझो ! हे लोकनाथ ! जीवों के हित, सुख और मुक्तिदायक धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करो। इस प्रकार दो तीन बार निवेदन करके और भगवान को प्रणाम करके देव लौट गये। भरिहंत अजितनाथ ने निश्चय किया कि मै एक वर्ष के पश्चात् संसार का त्याग कर दूंगा । भगवान का अभिप्राय जानकर प्रथम स्वर्ग के अधिपति देवेन्द्र ने वर्षीदान की व्यवस्था करवाई । अजित भगवान नित्य प्रातःकाल एक करोड आठ लाख, सुवर्ण मुहुरों का दान करने लगे । उधर युवराज सगर ने भी विशाल दानशाला खोल दी जिसमें हजारों यावक आहार-वस्त्र आदि ऐच्छिक वस्तु प्राप्त करने लगे । इस प्रकार भगवान अजितनाथ ने एक वर्ष की अवधि में तीन अरब अठासी करोड़ भस्सी लाख सुवर्ण मुद्राओं का दान किया। वर्षीदान देने के पश्चात् शकेन्द्र का आसन चलायमान हुआ। वह भगवान के पास आया । अन्य इन्द्रों, देवों तथा देवियों ने भगवान का दीक्षा महोत्सव किया । भगवान ने भी अपने लघु भ्राता सगर का राज्याभिषेक किया और उसे विनीता का राजा बनाया । देवों ने 'सुप्रभा' नामको शिविका तैयार की। भगवान ने सुन्दर वस्त्रालंकार धारण किये और शिविका पर आलढ़ हो गये। शिविका को देव तथा मनुष्य वहन करने लगे। उत्सव पूर्वक विशाल जन समूह के साथ शिविका सहस्त्राम्र उद्यान में पहुँची । माघ शुक्ला नवमी के दिन दिवस के पिछले प्रहर में जब चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र में आया तब भगवान ने सम्पूर्ण वस्त्रालंकार उतार दिये और इन्द्र द्वारा दिये गये देवदूष्य को धारण किया, पंचमुष्ठि लोच किया और सिद्ध भगवान को प्रणाम कर के सामायिक चारित्र को ग्रहण किया । उस दिन भगवान के छठ का तप था । सामायिक चारित्र स्वीकार करते समय भगवान अप्रमत्त गुणस्थान में स्थित थे। भावों की उच्चतम अवस्था के कारण उसी समय भग
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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