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________________ ५५ आगम के अनमोल रत्न णता प्राप्त करली । दोनों कुमार युवा हो गये । उनका,- शरीर समचतुरस्त्र था । वज्रऋषभनाराज संहनन होने से वे बड़े शक्तिशाली थे। विवाह के योग्य जानकर माता-पिता ने उनका सैकड़ों रूपवती कन्याओं के साय विवाह कर दिया। दोनों राजकुमार यौवनवय का आनंद लेने लगे । भवसर पाकर महाराजा जितशत्रु ने अजितकुमार का राज्याभिषेक किया । अजितकुमार के राजा बनने के बाद उन्होंने सगरकुमार को युवराज के पद पर प्रतिष्ठित किया ।। - एक वार ऋषभदेव की परम्परा के स्थविर मुनि का आगमन हुआ । उनका उपदेश सुनकर महाराज जितशत्रु ने प्रव्रज्या ग्रहण कर ली और विशुद्ध चारित्र की आराधना करके केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त किया और वे मोक्ष में गये। __अब महाराजा अजितकुमार बडो कुशलता पूर्वक राज्य का संचालन करने लगे । इनकी वीरता और गुणों से आकृष्ट होकर 'सैकड़ों राजागण इनके चरणों में झुकने लगे। प्रजा में न्याय नीति और सौहार्द की अभिवृद्धि होने लगी। इनके राज्य काल में प्रजा ने अपूर्व सुख समृद्धि की प्राप्ति की। इस प्रकार सुख पूर्वक राज्य का संचालन करते हुए अजित महाराजा का तिरपन लाख पूर्व का समय बीत गया। एक दिन महाराज अजितकुमार एकान्त में बैठकर सोचने लगेअब मुझे सासारिक भोगों का परित्याग कर स्व-पर कल्याण के मागें का अनुसरण करना चाहिये। वन्धनों को छेदन कर निर्वन्ध, निष्क्रमण और निर्विकार होने के लिये अविलम्ब त्याग मार्ग को स्वीकार कर लेना चाहिये । भगवान का यह चिन्तन चल ही रहा था कि इतने में लोकान्तिक देवों का आसन चलायमान हुआ । उन्होंने अपने ज्ञान से देखा कि अर्हत् अजितनाथ के निष्क्रमण का समय निकट आगया है। वे भगवान के पास आये - और परम विनीत शब्दों में निवेदन करने लगे
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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