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________________ ६८६ आगम के अनमोल रत्न www M एक बार भगवान महावीर वहाँ पधारे और चन्द्रावतरण नामक उद्यान में विराजित हुए। भगवान के आने की सूचना जब राजा उदयन को मिली तो वह “पूरी राजसी मर्यादा से अपने मन्त्रियों, अनुचरों और माता मृगावती एवं अपनी बुआ श्राविका जयन्ती को लेकर भगवान की वन्दना करने -चला। भगवान के चरणों में पहुँच कर उदयन, माता मृगावती एवं 'श्राविका जयन्ती ने प्रदक्षिणा पूर्वक वन्दना की और धर्म देशना सुनने की भावना से उनकी सेवा में बैठ गये। भगवान ने महती सभा के बीच उन सब को उपदेश दिया । भगवान की वाणी सुनकर परिषद् विसर्जित हुई और अपने अपने स्थान चली गई। __समा विसर्जित हो जाने पर भी जयन्ती अपने परिवार के साथ -वहीं ठहरी। अवसर पाकर धार्मिक चर्चा शुरू करते हुए जयन्ती श्राविका ने पूछा "भगवन् ! जीव गुरुत्व (भारीपण) को कैसे प्राप्त होता है ?" भगवान-जयन्ती ! जीव हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन परिग्रह मादि : अठारह पाप स्थान के सेवन से जीव भारीपन को प्राप्त होता है। जयन्तो-भगवन् ! जीव लघुत्व (हलकापन) को कैसे प्राप्त होता है। भगवान-जयन्ती! प्राणातिपात, असत्य, चोरी आदि अठारह पाप स्थान की निवृत्ति से जीव हलकेपन को प्राप्त करता है अर्थात् संसार को घटाता है। जयन्ती-भगवन् ! मोक्ष प्राप्त करने की योग्यता जीव को स्वभाव से प्राप्त होती है या परिणाम से ? भगवान-जयन्ती ! मोक्ष प्राप्त करने की योग्यता स्वभाव से है परिणाम से नहीं।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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