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________________ मागम के अनमोल रत्न महावीर के सिद्धान्त को मानने वाला श्रमणोपासक था और जीवादि तत्त्वों का ज्ञाता था । प्रियदर्शना को गलत मार्ग पर चलते देख कर ढंक ने उसे समझाने का निश्चय किया। एक दिन प्रियदर्शना स्वाध्याय कर रही थी। ढंक पास ही पड़े हुए मिट्टी के बर्तनों को उलट पलट कर रहा था। उसी समय आग का एक अंगारा प्रियदर्शना की ओर फेंक दिया। उसकी चद्दर का एक कोना जल गया। उसने ढंक से कहा-श्रावक ! तुमने मेरी चद्दर जला दी। ढक ने कहा-यह कैसे ? आपके सिद्धान्त से तो जलती हुई वस्तु. जली नहीं कही जा सकती फिर मैने आपकी चद्दर कैसे जलाई ? प्रियदर्शना को ढंक की बात समझ में आई और जमाली का सिद्धान्त गलत लगा । उसने जमाली के पास जाकर चर्चा की और उसे समझाने का प्रयत्न किया। जमाली ने उसकी कोई बात न मानी तब वह अपने साध्वी संघ के साथ भगवान के पास आई और क्षमा याचना कर भगवान के संघ में मिल गई । इसने कठोर तप किया और अन्त में घनघाती कर्म का नाश कर केवलज्ञान प्राप्त किया और मोक्ष में गई। । श्राविका जयन्ती वत्सदेश की राजधानी कोशाम्बी में उदयन नाम का राजा राज्य करता था। इसके पिता का नाम शतानीक, प्रपिता का नाम सहस्त्रानीक और माता का नाम मृगावती था। वह अत्यन्त धर्मपरायण और भगवान महावीर का उपासक था। महाराज शतानीक की बहन और राजा उदयन की दुआ जयन्ती नाम की श्राविका कोशांबी में रहा करती थी। वह आर्हत् धर्म की अनन्य उपासिका और धर्म की जानकार थी। वैशाली की तरफ से कोशाबी मानेवाले आर्हत् श्रावक बहुधा इसी के यहाँ ठहरा करते थे। इस कारण वह वशाली के भाईत् श्रावकों की प्रथम स्थानदात्री के नाम से प्रसिद्ध थी।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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