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________________ ६७८ आगम के अनमोल रत्न अकों के मध्य में आये हुए अङ्क से अर्थत् तेले से शुरू कर पांच अङ्क पूर्ण किये अर्थात् तेला, चोला, पंचोला, उपवास और बेला, किया । फिर बीच में आये हुए पांच के अङ्क से शुरू किया अर्थात् पंचोला, उपवास, बेला, तेला और चोला किया। बाद में बेला, तेला, चोला, पचोला और उपवास किया । उसके बाद चोलां, पंचोला, उपवास, बेला और तेला किया । इस तरह पहली परिपाटी पूर्ण की । इसमें तप के ५५ दिन और पारणे के २५ दिन कुल एक सौ दिन लगे । इसके बाद इस तप की दूसरी परिपाटी की। इसमें इसने पारणे में विगय का त्यागकिया । तीसरी परिपाटी में पारणे के दिन विगय के लेपमात्र का भी त्याग कर दिया। इसके बाद चौथो परिपाटी की। इसमें इसने पारणे के दिन मायम्बिल किया। इस प्रकार उन्होंने लघुसर्वतोभद्र तप की चारों परिपाटी की । चारों परिपाटियों के पूर्ण करने में ४०० दिन अर्थात् एक वर्ष एक महीना और दस दिन लगते हैं । इस प्रकार सूत्रोक्त विधि से तप की भाराधना कर अन्न में संथारा ग्रहण किया और सिद्धपद प्राप्त किया। इसनेः तेरह वर्ष तक चारित्र का पालन किया । वीरकृष्णा , कोणिक राजा की छोटी माता और श्रेणिक राजा की सातवीं रानी का नाम वीरकृष्णा था। वह दीक्षा लेकर अनेक प्रकार की तपस्या करती हुई विचरने लगी। एक समय चन्दनवाला आर्या की आज्ञा लेकर इसने महा सर्वतोभद्र तप प्रारम्भ कर दिया । इसकी विधि इस प्रकार है सबसे पहले उपवास किया, फिर पारणा किया, फिर बेला से लगाकर सात उपवास किये । इसकी प्रथम परिपाटी में पारणे में विगया वर्जित नहीं था। दूसरी लता में चोला, पंचोला, छह, सात, उपवास बेला तेला किया। तीसरी लता में सात किये फिर उपवास, बेला, तेला, चोला, पंचोला और छह किये । चतुर्थ लता में तेला, चोला, पंचोला, छह,
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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