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________________ आगम के अनमोल रत्न ६७७ भाहार पानी की दो सौ भठासी दत्ति हुई। सुकृष्णा मार्या ने सूत्रोक विधि से इस भष्ट अष्टमिका प्रतिमा की आराधना की। इसके बाद भार्या चन्दनवाला की आज्ञा प्राप्त कर उसने नवनवमिका मिक्ष प्रतिमा भङ्गीकार की। प्रथम नवक में एक दत्ति अन्न की भौर एक दत्ति पानी की ग्रहण की । इस क्रम से नवें नवक में नौ दत्ति अन्न की और नौ दत्ति पानी की ग्रहण की। यह नवनवमिका भिक्षु प्रतिमा इक्यासी दिन रात में पूरी हुई। इसमें आहार पानी की चार सौ पांच दत्ति हुई। इस नवनवमिका भिक्षु प्रतिमा की सूत्रोक विधि अनुसार भाराधना करके सुकृष्णा भार्या ने आर्या चन्दनवाला की आज्ञा प्राप्त कर दशदशमिका भिक्षु प्रतिमा अङ्गीकार की इसके । प्रथम दशक में एक दत्ति अन्न की और एक दत्ति पानी की प्रहण की । इस प्रकार क्रमशः दसवें दशक में दस दत्ति अन्न की और दस दत्ति पानी की ग्रहण की। वह दशदशमिका भिक्षु प्रतिमा एक सौ दिन रात में पूर्ण होती है। इसमें आहार पानी की सम्मिलित रूप से पांच सौ पचास दत्ति होती हैं। इस प्रकार इन भिक्षु प्रतिमाओं की सूत्रोक विधि से आराधना कर सुकृष्णा आर्या उपवासादि से लेकर अर्द्धमासखमण मासखमण आदि विविध प्रकार की तपस्या से आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी । इस प्रकार घोर तपस्या के कारण सुकृष्णा आर्या अत्य'धिक दुर्बल हो गई। अन्त में संथारा करके सम्पूर्ण कर्मों का क्षय कर सिद्ध गति को प्राप्त हुई। इसने १२ वर्ष तक चारित्र का पालन किया । महाकृष्णा कोणिक राजा की छोटी माता और श्रेणिक राजा की छठी रानी का नाम महाकृष्णा था। इसने भी काली रानी की तरह भगवान महावीर से प्रवज्या ग्रहण की। सामायिकादि ग्यारह अगसूत्रों का अध्ययन किया । इसने लघुसर्वतोभद्र तप किया । इसमें प्रथम एक उपवास किया फिर पारणा किया फिर वेला, तेला, चोला और पंचोला किया। फिर इन पांच
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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