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________________ ६७२ आगम के अनमोल रत्न तीन, दो, और एक, उपवास क्रिया । पारणा करके फिर आठ बेले. किये । पारणा करके तेला किया पारणा करके बेला किया फिर पारणा करके उपवास किया फिर पारणा किया । इस प्रकार काली, भार्या ने रत्नावली तप की एक परिपाटी की आराधना की। रत्नावली की यह एक परिपाटी एक वर्ष तीन महिना बाईस दिन में पूर्ण होती है । इस परिपाटी में तीन सौ चौरासी दिन तपस्या के एवं अठासी दिन पारणा के होते हैं । इस प्रकार कुल चारसौ वहत्तर दिन होते हैं। तदन्तर काली आर्या ने रत्नावली की दूसरी परिपाटी प्रारंभ कर दी-प्रथम उपवास किया, पारणे में सव विगय का त्याग किया । इस प्रकार उपवास का पारणा कर बेला किया फिर पारणा किया । फिर तेला कर पारणा किया और आठ वेले किये । पारणा करके उपवास किया फिर बेला तेला चोला पचोला और छठ करते हुए सोलह उपयास किये । फिर चौंतीस बेले किये । पारणा करके सोलह किये। फिर पन्द्रह, चौदह, तेरह, वारह इस प्रकार एक एक उपवास 'घटाते हुए क्रमशः एक उपवास किया । फिर आठ बेले किये । फिर तेला, बेला और उपवास किया । जिस तरह पहली परिपाटी की, इसी तरह दूसरी परिपाटी भी की परन्तु इसमें पांचों विकृतियों का त्यागपूर्वक. पारणा किया । इसी प्रकार तीसरी परिपाटी भी की । तीसरी परिपाटीमें पारणे के दिन विगय का लेप मात्र भो छोड़ दिया। इसी प्रकार चौथी परिपाटी भी की परन्तु इसके पारणे में आयम्बिल किया। इस प्रकार काली आर्या ने रत्नावली तप की चारों परिपाटी को पांच वर्ष दो मास और अठ्ठाईस दिन में पूर्ण करके चन्दनवाला आर्या के पास उपस्थित हुई अपनी मात्मा को भावित करने लगी। इस प्रकार की कठोर तपस्या से काली आर्या की देह अत्यन्त' क्षीण हो गई । उसके शरीर का रक और मांस सूख गया । मात्र हड्डियों का ढाँचा रह गया । उठते उठते चलते फिरते उनके शरीर की हड्डियों से कड़ कह की आवाज होने लगी। शरीर के सूख जाने पर
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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