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________________ ६४२ आगम के अनमोल रत्न. सागरपुत्र को बहुत समझाने पर भी जब वह नहीं माना तो सागरदत्त घर चला भाग और अपनी पुत्री से बोला-बेटी । सागरपुत्र अब तेरे साथ नहीं रहना चाहता किन्तु तुम मत घबराओ, मै तुम्हारे लिए ऐसा वर चुनूँगा जो जिन्दगी भर तुम्हारा साथी बनकर रहेगा। एक वार सागर दत्त अपने भवन की छत पर बैठा हुआ राजमार्ग को देख रहा था। उसकी दृष्टि एक हट्टे कट्टे युवक भिखारी पर पड़ी। वह सांधे हुए टुकड़ो का वन्न पहने हुए था । बाल बढ़े हुए थे । हाथ में मिट्टी का पात्र था । उसके चारों ओर मक्खियाँ भिनभिना रही थीं। वह राजमार्ग पर भीख मांग रहा था। सागरदत्त ने सोचा अगर इस भिखमंगे के साथ सुकुमालिका का विवाह कर दिया जाय तो सुकुमालिका इसके साथ सुख पूर्वक रह सकेगी। यह सोच उसने अपने नौकरों द्वारा उस भिखमंगे को वुलवाया। उसके पुराने कपड़े उतरवाकर उसे स्नान करवाया । बाल वनवाये और सुन्दर वस्त्रों एवं गहनों से अलंकृत किया । उत्तम भोजन करवा कर उसने सुकुमालिका का उस भिखमंगे के साथ पाणिग्रहण करवा दिया। जब भिखमंगे को सुकुमालिका के हाथ का स्पर्श हुआ तो वह वेदना के कारण घबरा उठा । रात्रि के समय वह भी कपड़े तथा अलंकारों को छोड़ कर अपनी पुरानी वेष भूषा को पहन कर भाग निकला। कर्म का विधान अचल है । नागश्री के पूर्वजन्म के दुष्कृत्यों के कारण माता पिता के मनोरथ मिट्टी में मिल गये । सुकुमालिका का कौमार्य भी गया और पति भी भाग गया। पति विहीना सुकुमालिका अपने भाग्य को कोसती हुई और हाय विलाप करती हुई दुःख की जिन्दगी बिताने लगी। सुकुमालिका को अत्यन्त दुःखी देखकर सांत्वना के स्वर में सागरदत्त ने कहा-पुत्री ! इस समय तेरे पाप कर्म का उदय है इसलिये तुम समभाव से कर्मफल को सहलो । पुराने कर्मों को नष्ट करने का
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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