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________________ आगम के अनमोल रत्न हैं । अब हम लोगों पर कृपाकर आप अपना असली रूप प्रकट -कीजिए । राजा भीम की बात सुनकर कुब्ज बोला-राजन् ! आपको भ्रम हो गया है । कहाँ राजा नल अनुपम सौन्दर्यवान और कहा मै बदरूप कूबड़ा । विपत्ति के मारे राजा नल कहीं जंगलों में भटक रहे होंगे। आप वहीं खोज करवाइये । ___ भीम बोला-नरवर ! आप स्वयं बुद्धिमान है। स्वजनों को 'विशेष कष्ट में डालना उचित नहीं है । यह कहते-कहते भीम का गला भर आया । दमयन्ती की आँखों से अश्रु बह रहे थे । कुब्ज नल अधिक समय तक अपने को छिपा नहीं सके । वह तत्काल अपनी -रूप परावर्तिनी विद्या के बल से असली नल के रूप में प्रकट हो -गये । नल को असली रूप में देख कर भीम पुलकित हो उठा दमयन्ती की खुशी का पारावार न था । दमयन्ती की बहुत वर्षों की साध पूरी हो गई। दमयन्ती के जीवन में पुनः वसन्त आ गया । राजा दधिपण को जब यह ज्ञात हुआ कि वह कुब्ज तो राजा नल ही था और उसे यथार्थ में पाने के लिये ही यह उपक्रम किया गया था तो वह भय मिश्रित लज्जा से झुक गया । दमयन्ती को पाने के अपने कुत्सित विचारों पर उसे घृणा हुई। वह तत्काल नल के पास आया और अपने अपराध के लिये बार-बार क्षमा मांगने लगा। -नल ने उठाकर उसे अपने गले लगा लिया । बारहवर्ष की अवधि समाप्त होगई। राजा भीम और दधिपर्ण की विशाल सेना को साथ में लिये राजानल अयोध्या की ओर चले। कुबेर को जब इस बात का पता लगा तो वह भी अपनी विशाल सेना के साथ नल के सामने आया । दोनों में युद्ध हुआ । कुबेर हार गया । नल ने उसे बन्दी बना लिया । नल पुनः अयोध्या का राजा बना । नल हृदय के बड़े विशाल थे । उसने कुबेर को मुक्त कर दिया और उसे अपने साथ में ही सम्मान पूर्वक रखने लगा।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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