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________________ अगम के अनमोल रत्न ६३७ कुब्ज ने तत्काल रथ रोक दिया और बोला-"अभी समय बहुत है। अपनी विद्या का मुझे भी चमत्कार दिखाये ।" पास ही एक बहेड़ा का वृक्ष था । उसने पूछा-स्वामी ! वताइये इस वृक्ष पर कितने फल है ? राजा ने कहा-अठारह हजार फल हैं । कुब्ज ने तत्काल उस वृक्ष को गिरा दिया और सभी ने मिलकर उसे गिना तो पूरे अठारह हजार फल निकले। एक क्षण में वृक्ष के फलों को गिनना कोई साधारण काम नहीं था । कुब्ज इस विद्या से बड़ा चमत्कृत हुमा । उसने राजा से कहास्वामी । यह विद्या आप मुझे भी सिखा दीजियेगा। मै आपका बहुत एहसानमंद होऊँगा। राजा ने कहा--कुब्ज | अगर तू मुझे अश्वविद्या सिखा दे तो मै भी तुझे संख्याविद्या सिखा सकता हूँ। कुन्ज ने यह बात मानली । दोनों ने प्रेमपूर्वक अपनी विद्याओं का आदान प्रदान किया और आगे चल पड़े। देखते ही देखते कुण्डिनपुर पहुँच गये । राजा भीम ने उनका उचित सन्मान करके उत्तम स्थान में ठहराया । राजा दधिपर्ण ने देखा कि शहर में स्वयंवर की कुछ भी तैयारी नहीं है फिर भी शान्तिपूर्वक अपने नियत स्थान पर ठहर गये । __ महाराज भीम कुबड़े को भी दधिपणं के साथ देख बहुत अधिक प्रसन्न हो रहे थे अब उन्हें किसी भी प्रकार का सन्देह न रह गया था । भीम ने कुवड़े से सूर्यपाक बनवाया । सूर्यपाक खाकर भीम को पूरा विश्वास होगया कि यह रसोइया महाराजा नल ही है अन्य कोई नहीं। राजा भीमने शाम को कुबड़े को अपने महल में बुलाया और कहा-हमने आपके गुणों की प्रशंसा सुनली है तथा हमने स्वयं भी परीक्षा करली है। राजा नल के जो तीन विशिष्ट गुण है सूर्यपाक रसोई बनाना, हाथो को वश में करना, और अश्वविद्या को जाननावे आप में भी उसी तरह पाये जाते हैं । अतः भाप राजा नल ही
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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