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________________ ६२४ आगम के अनमोल रत्न यह खेल बन्द कर दिया जाय । भाई की यह चुनौती नल ने स्वीकार कर ली। __ हार जीत के आधार पर जुआ खेलने का एक दिन निश्चित हुआ । राज्य के प्रतिष्ठित प्रजा जनों के सामने नल और कुबेर का शतरंज प्रारम्भ हो गया । पासे फिकने लगे । खेल ही खेल में खेल बढ़ता गया । नल खेलने में इतना तल्लीन हो रहा था कि वह आगे की सारी वाते भूल गया और राज्य के भागों को दाव में रखने लगा। कुबेर सावधान था । वह अपनी चालें बराबर चलता जाता था और उसमें सफल होता जा रहा था। उसने एक एक कर राज्य के सारे बड़े बड़े नगर और शेष सभी गाँव जीत लिये । नल अब राजा न रहकर एक सामान्य नागरिक बन गया। खेल समाप्त होगया। कुबेर जो चाहता था वह उसे मिल गया। नल को भिखारी बना देख कुबेर अब नल की हंसी उड़ाने लगा। जब मनुष्य अपनी ही मूर्खता से सब कुछ खो देता है तब उसके पास पश्चाताप और अनुताप के सिवाय और कुछ भी नहीं रहता । नलको अपनी गल्ती का न होगया लेकिन "अब पछताये होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत"। अस्तु कुबेर ने अपने राजा होने व नल के वनवासी होने की एक साथ ही घोषणा करदी। नगर में हा हा कार मच गया । जिसने भी सुना उनके इस दुःखद घटना से हृदय रो उठे। . नल को अपने पुरुषार्थ पर विश्वास था । वे बोल उठे-कुबेर ! चलो ठीक हुआ । अव मै अपनी इच्छा के अनुसार विचरण करूंगा। राज्य; के इस बन्धन कोः तुम संभालो। महापुरुष वही है जो सम्पत्ति .और विपत्ति में एक रूप ही रहते हैं । नल तत्काल महल में आये और अपनी प्रियतमा दमयंती से विदाई मांगने लगे। नल के मुख से समस्त राज्य जूऐ में हार जाने की बात सुनकर दमयंती चौंक उठी
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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