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________________ आगम के अनमोल रत्न और दमयन्ती की कीर्ति चारों ओर फैल गई । दुर्जनों का यह स्वभाव -सा रहा है कि वे सज्जनों की बढ़ती हुई प्रतिष्ठा को कभी सहन नहीं करते । नल के छोटे भाई कुवेर को नल की बढ़ती हुई प्रतिष्ठा से -लोभ होने लगा। वह रात दिन यही सोचा करता था कि किसी भी प्रकार से नल को नीचा दिखाया जाय और अयोध्या का राज्य -उससे छीन लिया जाय । नल इतना कुशल प्रशासक था कि कुबेर को 'अपनी मनमानी करने का अवसर ही नहीं मिलता था । मनुष्य जब तक असर्वज्ञ है तब तक उसमें कुछ न कुछ न्यूनता रहती है । न्यूनता के कारण मनुष्य का पतन सरलता से हो ही ‘जाता है । नल में यद्यपि सभी गुण मौजूद थे किन्तु एक ऐसा दुर्गुण भी उनमें था जिसके कारण उनके विरोधी उनसे लाभ उठाने में सफल हो गये । नल को जुआ खेलने का व्यसन था। कुबेर ने इसका लाभ उठाया । कुवेर सोचने लगा-सैन्य बल और धन वल के अभाव में नल का मुकाबला करना तो मूर्खता होगी । जिस उपाय से दुर्यो"धन पाण्डवों से राज्य प्राप्त किया था उसी उपाय से मैं भी राजा नल से राज्य प्राप्त करूँगा। नल विशाल और उदार हृदय वाले थे। वह अपने लघुभ्राता कुबेर पर अतिशय प्रेम रखते थे अतएव कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि भाई कुबेर का हृदय अन्यथा भी हो सकता है। कुबेर पूर्व की अपेक्षा नल के प्रति अधिक प्रेम भाव दर्शाने लगा। अब दोनों भाइयों ने विश्राम के समय शतरज खेलना शुरू कर दिया। धीरे धीरे यह व्यसन इतना अधिक बढ़ गया कि नल अपना अधिक समय इसी में विताने लगा । अवसर पाकर एक दिन कुत्रेर ने नल से कहा-माई ! आज तक हम शतरंज मनोरंजन के लिए खेला करते थे किन्तु इस तरह की हाथ घिसाई में क्या रखा है? जब तक दाँव नहीं लगाया जाय खेलने में आनन्द नहीं आता । अव अगर शतरंज खेलना ही है तो हार जीत की शर्त पर ही खेला जाय अन्यथा
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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