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________________ आगम के अनमोल रत्न 'ने अपने पचन के अनुसार कृतपुण्य को अपनी कन्या और भाषा राज्य दे दिया । कृतपुण्य भानन्द के साथ रहने लगा । हतपुण्य के बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर उसकी चार पद्य घ गणिका भी भाकर "मिल गई और उसके माय रहने लगी। एक बार भगवान महापोर का राजगृह में भागमन हुमा । यहाँ उनका समवशरण हुमा। राजा श्रेणिक, नन्त्री अभयपुन्नार य नगर की जनता ने भगवान के दर्शन किये और उनका उपदेश मुना । ___ भगवान के आने की बात जब मृतपुण्य को ज्ञात हुई तो यह भी बड़े ठाठ के माथ भगवान के समवशरण में पहुँचा 1 भगवान का उपडेग सुनने के याद उसने अपनी विपत्ति और मन्ममि का कारण पूछा । उत्तर में भगवान ने उसके पूर्व जन्म सा वृत्तान्त बताते हुए कहा-कृतपुण्य ! तू पूर्व जन्म में गोपालक यालक था । नूने मामोपवासी अनगार को खीर का दान दिया था जिसके प्रभाव से ही तुझे यह वैभव मिला है। भगवान के मुग से अपने पूर्वजन्म का प्रशान्त मुनकर उसे वैराग्य उत्सन्न होगया । उमने ममस्त भय का परित्याग कर भगवान के समीर दीक्षा ग्रहण कर ली। दीक्षित पनकर उसने सामायिकादि ग्यारह अंग पत्रों का अध्ययन किया । मगधर्म का यावज्जीवन तक उत्तम रीति से पालन कर अन्त समय में एक माग -का अनशन कर देवलोक में महर्दिक देव पना । यहाँ से आपका यह महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध गुर और मुरू होगा ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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