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________________ आगम के अनमोल रत्न ६०७ मंकाई गृहपति राजगृह नगर में श्रेणिक महाराजा राज्य करते थे । उस नगर में एक समृद्धशाली मंकाई नाम का गृहपति रहता था। एक बार भगवान महावीर राजगृह के गुणशील उद्यान में पधारे। भगवान का आगमन सुनकर परिषद् दर्शन करने के लिये निकली। मंकाई गाथापति बड़े वैभव के साथ भगवान के दर्शनार्थ घर से निकला। भगवान के पास पहुँच कर उसने भगवान को वन्दना की और एक ओर बैठ गया । भगवान ने महती परिषद् के वीच मंकाई गृहपति को उपदेश दिया। जिसको सुनकर मंकाई गृहपति के हृदय में वैराग्य भाव उत्पन्न होगया। अपने घर आकर अपने ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब का भार सौंप कर हजार मनुष्यों से उठाई जाने वाली शिविका पर बैठ कर दीक्षा लेने के लिये भगवान के पास आये और अनगार बन गये । दीक्षा लेने के बाद मंकाई अनगार ने श्रमण महावीरस्वामी के तथारूप स्थविरों के पास सामायिकादि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और स्कन्धकजी के समान संथारा करके विपुलगिरि पर सिद्ध हुए। किंकिम गृहपति ये राजगृह के निवासी थे। इन्होंने ज्येष्ठ पुत्र को घर का भार -सौंप कर भगवान महावीर के पास दीक्षा ग्रहण की । दीक्षा लेकर ग्यारह अंगसूत्रों का अध्ययन किया। अन्त में विपुल पर्वत पर भन-शन कर सिद्धगामी हुए। काश्यप गृहपति राजगृह नगर में महाराज श्रेणिक राज्य करते थे। वहां काश्यप नाम का एक धनाढय गृहपति रहता था । उसने भगवान महावीर के -समीप मंकाई गृहपति की तरह दीक्षा ग्रहण की । सोलह वर्ष तक श्रमण पर्याय का पालन कर अन्त में विपुलगिरि पर्वत पर- सिद्धाहमा
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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