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________________ ५४६ आगम के अनमोल रत्न दूसरे दिन चेलणा ने राजा श्रेणिक से अपने लिये रत्नकम्बल खरीदने को कहा । राजा ने व्यापारी को बुलाया तो व्यापारी ने भद्रा सेठानी द्वारा सारे कम्बल खरीदे जाने की बात कह दो । राजा को यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ । उसने शालिभद्र को अपने यहां बुलवाया; पर शालिभद्र को भेजने के बजाय भद्रा ने श्रेणिक को अपने यहाँ आमन्त्रित किया । भद्रा ने राजा के स्वागत-सत्कार की पूरी व्यवस्था कर दी। राजा शालिभद्र के घर पहुँचा । सप्तखण्ड प्रासाद की एक एक मंजिल की भव्य रचना देखकर राजा चकित रह गया । राजा चौथे मंजिल पर जाकर ठहर गया । शालिभद्र की माता श्रेणिक के आगमन की सूचना देने शालिभद्र के पास पहुंची और बोली-'पुत्र ! मगध के सम्राट्र महाराजा श्रेणिक अपने घर तुझे देखने के लिये आये हैं। उन्हें मिलने के लिये चलो।" शालिभद्र ने कहा-"माताजी ! इसमें मुझे आने की क्या आवश्यकता है। जो योग्य मूल्य हो उसे खजांची से दिलवा कर भण्डार में उसे रख दो।" पुत्र की इस बात पर माता हँसी। वह बोली-"पुत्र ! श्रोणिक कोई खरीदने की वस्तु नहीं हैं। वह हमारे नाथ है । मगध के सम्राट हैं। और तुम्हारे भी स्वामी हैं । तुम्हें उनसे मिलने के लिये चलना होगा।" माता की आज्ञा सुन कर शालिभद्र खड़ा हुआ और राजा से मिलने के लिये महल से नीचे उतरने लगा। सीढ़ी से नीचे उतरते हुए सोचने लगा-"मैं मानता था कि अब मेरा कोई स्वामी नहीं है किन्तु मेरी यह धारणा असत्य थी। यहां के राजा मेरे स्वामी हैं और मै उनका भाधीनस्थ प्रजा-जन हूँ। यह मुझे अब पता चला । अब मुझे ऐसा काम करना चाहिये जिससे मेरा कोई स्वामी हो न रहे।" उसने भगवान महावीर से प्रवज्या लेने का निश्चय किया। शालिभद्र माता के अनुरोध से श्रेणिक के पास आया और उन्हें विनय पूर्वक प्रणाम किया । राजा ने उसे स्नेह पूर्वक अपनी गोद में
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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