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________________ आगम के अनमोल रत्न ५४५ धन्य शालिभद्र राजगृह के धनाढ्य श्रेष्ठी गोभट्ट के पुत्र का नाम शालिभद्र था। भद्रा इसकी माता थी । इसका वत्तीस श्रेष्ठी कन्याओं के साथ विवाह हुआ था । गोभद्र सेठ भर कर देव बना । पुत्रस्नेह वश वह देवलोक से दिव्य वस्त्राभूषण, भोजन आदि भोगोपभोग की सामग्री सदा देवलोक से भेजा करता था। शालिभद्र अपने सप्तखण्डी प्रासाद में रहकर देवता की तरह आनन्द करता था । यह दिव्य समृद्धि इसे पूर्व जन्म में संगम नामक वत्सपाल के भव में एक तपस्वी को 'पायस' (खीर) दान के कारण मिली थी। एक वार राजगृह में एक व्यापारी बहुमूल्य कम्बलों को बेचने भाया था। उसके एक-एक कम्बल की कीमत लाख-लाख रुपये थी। उसके पास ऐसी सोलह कम्बल थीं। राजगृह के सम्राट श्रेणिक ने स्वयं इन कम्बलों को अधिक मूल्य के कारण खरीदने से इनकार कर दिया। न्यापारी निराश होकर लौट रहा था । भद्रा सार्थवाही को इस वात का पता चला । उसने दासी द्वारा व्यापारी को बुलाया और उससे सोलह कम्बल खरीद ली। भद्रा सेठानी की बत्तीस बहुएँ थी। उसने एक-एक कम्बल के दो-दो टुकड़े कर बहुओं में बाट दिये । बहुओं ने उन कम्बलों से पैर पौछकर उन्हें फेंक दिया । उन फेंकी गई रत्नकम्वलो के टुकड़ों को सफाई करने वाली महतराणी उठाकर ले गई । वह उसे भोढ़कर राजमहल में सफाई करने गई । सफाई करने वाली के शरीर पर बहुमूल्य कम्बल को देखकर रानी चेलना ने उसे पूछा-यह कम्बल कहाँ से आई ? उसने कहा-गोभद्र सेठ की बहुओं ने पैर पौछ कर कम्वल के टुकड़ों को , फैक दिया था । में उन्हें उठाकर ले आई हूँ। गोभद्र सेठ की इस भव्य ऋद्धि से चेलना को बड़ा आश्चर्य हुआ ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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