SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 577
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम के अनमोल रत्न ५४३ पकरण लेकर भगवान के पास आये भौर भाण्डोपकरण रख दिये । धन्य भनगार के स्वर्गगमन के समाचार सुनकर गौतम स्वामी ने भगवान से पूछा- भगवन् ! धन्य अनगार ने मृत्यु के बाद कहाँ जन्म ग्रहण किया। उत्तर में भगवान ने कहा-धन्य अनगार मृत्यु के बाद सर्वार्थसिद्ध विमान में तेतीस सागरोपम की उत्कृष्ट आयु वाले महर्द्धिक देव वने है। वहाँ से आयु पूर्णकर वे महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध बनेंगे। सुनक्षत्र अनगार काकन्दी नाम की नगरी थी। वहाँ का राजा जितशत्रु था। वहां भद्रा नाम की एक सार्थवाही रहती थी। उसके पास अपरिमित धन था। उस सार्थवाहो के सुनक्षत्र नाम का पुत्र था। उसका बत्तीस इभ्य कन्याओं के साथ विवाह हुआ। भगवान महावीर की दिव्यवाणी सुनकर उसके मन में वैराग्य का भावना जागृत होगई और वह अपने विपुल वैभव को छोड़कर मुनि बन गया। मुनि बन जाने के वाद सुनसत्र अनगार ने अगसूत्रों का अध्ययन कर कठोर तप किया । अन्तिम दिनों में विपुलगिरि पर अनशन कर सवार्थसिद्ध विमान में देवत्त्व प्राप्त किया । देवलोक से च्युत होकर सुनक्षत्र अनगार महाविदेह क्षेत्र में सिद्धि प्राप्त करेंगे। ऋपिदास और पेल्लख अनगार ये दोनों श्रेष्ठी पुत्र राजगृह नगर के रहने वाले थे । इन दोनों की माता का नाम भद्रा सार्थवाही था। दोनों का बत्तीस वत्तोस कन्याओं के साथ विवाह हुआ । दोनों ने भगवान महावीर के समीप चारित्र अहण कर सर्वार्थ सिद्धि विमान मे देवत्व प्राप्त किया । भविष्य में ये दोनों भनगार महाविदेह में सिद्धि प्राप्त करेंगे। रामपुत्र और चन्द्रिक अनगार ये दोनों अनगार साकेत नगर के भद्रा सार्थवाही के पुत्र थे। दोनों का बत्तीस बत्तीस कन्याओं के साथ विवाह हुआ। दोनों ने भग.
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy