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________________ ५४२ आगम के अनमोल रत्न बड़ी ग्लानि होती थी । यद्यपि धन्य अनगार का शरीर सूखे गया था किन्तु राख के ढेर से ढकी आग के समान वह अन्दर ही अन्दर आत्म तेज से प्रदीप्त हो रहा था। वे तपस्तेज से अत्यन्त सुशोभित लगते थे । एक समय प्रामानुग्राम विचरण करते हुए भगवान महावीर राजगृह पधारे। भगवान का आगमन सुन श्रेणिक महाराजा एवं नगर की विशाल जनता भगवान के दर्शनार्थ गई । भगवान ने महती परिषद् को उपदेश दिया । परिषद् वापिस चली गई वन्दना नमस्कार करने के बाद श्रेणिकराजा ने भगवान से प्रश्न किया कि हे भगवन् ! आपके 'पास इन्द्रभूति आदि सभी साधुओं में कौन सा साधु महा दुष्कर क्रिया और महा निर्जरा का करने वाला है ? भगवान ने फरमाया कि हे श्रेणिक ! इन सभी साधुओं में धन्य अनगार महादुष्कर क्रिया और - महानिर्जरा करने वाला है । भगवान से ऐसा सुनकर श्रेणिक राजा धन्यमुनि के पास थाया, हाथ जोड़, तीन बार वन्दना नमस्कार कर यों कहने लगा- हे मुने ! आप धन्य हो, पुण्यशाली हो, कृतार्थ हो । आपने मनुष्य जन्म को सफल किया । आपके कठोर तप और साधना की भगवान तक ने प्रशंसा की है । एकबार अर्धरात्रि के समय धर्म जागरणा करते हुए धन्य मुनि को ऐसा विचार उत्पन्न हुआ कि मेरा शरीर तपस्या से सूख गया है । अब शरीर से विशेष तपस्या नहीं हो सकती, इसलिए प्रातःकाल भगवान से पूछकर संलेखना संथारा करना ठीक है । ऐसा विचार कर - दूसरे दिन प्रातःकाल धन्यमुनि भगवान के पास आये और संथारा करने की आज्ञा मांगी। भगवान ने अनुमति दे दो । भगवान से अनुमति प्राप्त कर स्थविरों के साथ विपुलगिरि पर चढ़े। वहाँ एक शिलापट्ट पर एक महिने का संधारा करके नौ मास तक संयम पालन कर यथासमय काल कर गये । धन्य अनगार काल कर गये हैं यह जान -कर स्थविरों ने कायोत्सर्ग किया । तत्त्पश्चात् धन्य अनगार के भाण्डो
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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