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________________ आगम के अनमोल रत्न ५२९ इस प्रकार राजाओं में सिंह के समान ओणिक राजा ने श्रमणसिंह अनाथि मुनि की परम भक्ति पूर्वक स्तुति की । मुनि का धर्मोपदेश सुनकर राजा श्रेणिक दूसरे दिन अपने विशाल परिवार के साथ मुनिदर्शन के लिये भाया और वह मिथ्यात्व का त्याग कर शुद्ध धर्मानुयायी बन गया । परम भक्ति पूर्वक मुनिवर को वन्दना नमस्कार करके अपने स्थान को चला गया । मुनि ने भी अन्यत्र विहार कर दिया । संयम की विशुद्ध आराधना करते हुए उन्होंने अन्त में मोक्ष प्राप्त किया। समुद्रपाल चम्पा नाम की नगरी में पालित नाम का एक व्यापारी रहता था। वह श्रमण भगवान महावीर का श्रावक था । वह जीव अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता और निर्ग्रन्थ प्रवचनों में बहुत कुशल था। एक बार व्यापार करने के लिये के लिये जहाज द्वारा पिहुण्ड नामक नगर में आया । पिहुण्ड नगर में आकर उसने अपना व्यापार शुरू किया । न्याय, नीति, सचाई और ईमानदारी के साथ व्यापार करने से उसका व्यापार चमक उठा । सारे शहर में उसका यश और कीति फैल गई । पिहुण्ड नगर में रहते हुए उसे कई वर्ष बीत गये । उसके गुणों से भाकृष्ट होकर पिण्ड नगर के निवासी एक महाजन ने रूप लावण्य सम्पन्न अपनी कन्या का विवाह पालित के साथ कर दिया । अब वे दोनों दम्पतो आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे। कुछ समय पश्चात् वह कन्या गर्भवती हुई । अपनी गर्भवती पत्नी को साथ लेकर पालित श्रावक जहाज द्वारा अपने घर चम्पा नगरी आने के लिए रवाना हुमा । मासन्नप्रसवा होने से पालित की पत्नी ने समुद्र में ही पुत्र को जन्म दिया । समुद्र में पैदा होने के कारण उस बालक का नाम समुद्राल रखा गया । अपने नवजात पुत्र भौर स्त्री के
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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