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________________ आगमके अनमोल रत्न' ५१७ . एक दिन साधुओं से भयभीत करने के लिये पुत्रों को बुलाकर कहा- "पुत्रों ! जो जैन भिक्षु होते हैं । जिनके मुख पर मुखवस्त्रिका बंधी हुई होती है और जिनके पास रजोहरण होता है और जो भूमि को देखकर चलते हैं। वे बड़े खतरनाक होते हैं । यद्यपि देखने में बड़े सीधे-साधे लगते हैं किन्तु उनकी झोली में घातक शस्त्र होते हैं। वे बच्चों को पकड़कर ले जाते हैं और जंगल में ले जाकर मार डालते है । अतः उनसे सावधान रहना । उन्हें कहीं देखो तो तत्काल दौड़कर सुरक्षित स्थल में जाकर छुप जाना।" - एक समय दोनों वालक गांव के बाहर खेल रहे थे । उपर से अचानक दो मुनि मार्ग भूलने से मा निकले । वे गांव में गये और भृगु पुरोहित के यहाँ से माहार ग्रहण किया । आहार देने के बाद मृगु ने मुनिराज से कहा--"मुनिराज ! मेरे दो बालक बड़े उद्दण्ड हैं। कहीं आपको देखकर उपद्रव न कर बैठे अत. आप आहार गांव के बाहर जाकर एकान्त में करलें और वहाँ से आगे विहार कर जाये । मुनियों ने भृगु की बात सुनी और वे आहार लेकर वन की ओर चले । उपर से दोनों पालक खेलते खेलते गाव को ओर भारहे थे । उनकी दृष्टि मुनिराजों पर पड़ी । मुनिराजों को सामने आते देख वे घबरा गये और वहां से भाग कर एक बड़े वृक्ष पर चढ़कर छुप गये । संयोगवश मुनि भी भाहार करने के लिये उसी वृक्ष के नीचे आये । प्रथम उन्होंने भूमि का रोहरण से परिमार्जन क्यिा । इसके वाद कायोत्सर्ग किया और झोली खे.लकर आहार करने लगे। यह सब दृश्य वृक्ष पर चढ़े हुए दोनों वालक ध्यानपूर्वक देख रहे थे। मुनि का प्रथम भूमि परिमार्जन, जीवों का यत्नपूर्वक रक्षण तथा अपने ही घर का भोजन मुनियों के पात्र में देखकर विचार करने लगे--पिताजी ने जैन मुनियों के बारे में जो भय-जनक बातें चताई यों वे सब विपरीत थीं। यहाँ तो मुनिराज का वालकों को मारना तो दूर रहा किन्तु ये तो एक जीव को भी कष्ट नहीं देते।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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