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________________ ५०२ आगम के अनमोल रत्न माला का परिचय प्राप्त कर राजा ने उसके साथ विवाह कर लिया। वह बहुत समय तक पहाड़ी स्थान में रहा इसलिये उसका नाम नग्गति पड़ा। कुछ समय वहाँ रहने के बाद नग्गति वापस नगर लौट आया। कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन नग्गति राजा सेना सहित घूमने लगा । वहाँ नगर के बाहर एक आम्रवृक्ष देखा । राजा ने उस में से एक मंजरी तोड़ ली । पीछे आते लोगों ने भी उस पेड़ में से मञ्जरी पल्लव आदि तोडे । लौटकर आते हुए राजा ने देखा कि वह वृक्ष हूँठ मात्र रह गया है। ___ कारण जानने पर राजा को विचार हुआ, "अहो ! लक्ष्मी कितनी चंचल है ।" इस विचार से राजा को वैराग्य उत्पन्न हो गया और उसने दीक्षा लेली और प्रत्येकबुद्ध बन क्षितिप्रतिष्ठित नगर के यक्ष मन्दिर मे अन्य तीन प्रत्येक बुद्धों के साथ उसने प्रवेश किया । (शेष वर्णन के लिये देखिये 'दुम्मुह प्रत्येक वुद्ध ।') मुनि हरिकेशबल मथुरा नगरी में 'शंख' नामका राजा राज्य करता था। वह त्रिवर्ग (धर्म, अर्थ और काम) की साधना करने वाला श्रावक था। शंख को वैराग्य हुआ और उसने दीक्षा ले ली । कालान्तर में वह गीतार्थ (शास्त्र का ज्ञाता) हुआ । एक बार विहार करते हुए शंखमुनि हस्तिनापुर गये और गोचरी के लिये उन्होंने नगर में प्रवेश किया । वहाँ एक ऐसा मार्ग था जो सूर्य की गर्मी से इतना उत्तप्त रहता था कि उसमें चलने वाला व्यक्ति भुनकर भर जाता था । अतः लोग उस मार्ग को 'हुतावह' कहते थे। मुनिराज शंख जब उस मार्ग के पास भाये तो उन्होंने अपने महल के गवाक्ष में बैठे हुए सोमदेव पुरोहित से पूछा-"क्या मैं इस मार्ग से आ सकता हूँ?" सोमदेव जैन मुनियों से द्वेष रखता था ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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