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________________ आगम के अनमोल रत्न ५०१ पर निंदा का क्या अधिकार है ? आत्म-निश्रेयस मुनि को किसी को गहीं नहीं करनी चाहिये ।" इस प्रकार विवाद को बढ़ता देख नमि ने सब का समाधान करते हुए कहा -“हित की भावना से अगर कोई सच्ची बात कहता हो तो उसे दोष-दर्शन या निंदा नहीं माननी चाहिये । ___ अन्त में चारों प्रत्येकबुद्ध केवलज्ञान प्राप्त कर अलग-अलग विचरण करने लगे। इन चारों प्रत्येक युद्धों के जीवों ने पुष्पोत्तर नामक विमान से एक साथ च्यवन किया था । चारों ने पृथक्-पृथक् स्थानों में दीक्षा अवश्य ग्रहण की थी पर चारों की दीक्षा एक ही समय में हुई और 'एक ही साथ मोक्ष प्राप्त किया । नग्गति गाधार जनपद में पुण्ट-वर्धन नाम का नगर था। उस नगर में सिंहरथ नाम का राजा राज्य करता था। एक बार उत्तरापथ के किसी राजा ने सिंहरथ को दो घोड़े भेट किये। उनमें एक घोड़ा वक्र शिक्षा वाला था । राजा उस वक्र शिक्षा वाले घोड़े पर बैठा । राजा ने ज्यों ही लगाम खींची त्यों ही घोड़ा पवन वेग से भागने लगा। राजा ने उसे रोकने का बहुत प्रयत्न किया । राजा ज्यों-ज्यों रोकने के लिये उसकी लगाम खींचते त्यों-त्यों वह तेजी से भागने लगता था। अन्त में वह राजा को १२ योजन के एक निर्जन प्रदेश में ले गया। राजा ने थक कर घोड़े की रास ढीली कर दी । रास के ढीली होते ही घोड़ा वहीं रुक गया । राजा घोडे से नीचे उतरा । उसने सामने सात मंजिल ऊँचा एक महल देखा । राजा उस महल में गया। उसमें प्रवेश करते ही राजा को एक सुन्दर कन्या दिखाई दी। वह कन्या तोरणपुर नगर के राजा दृढशक्ति की पुत्री कनकमाला थी। कनक
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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