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________________ ' आगम के अनमोल रत्न तूं पढ़ा लिखा नहीं है ।" कपिल ने कहा, "मां मैं अब अवश्य पहूँगा ।" यशा में कहा-'पुत्र ! यहाँ तो यह नया पुरोहित हम से ईया करता है इसलिये वह तुझे पढ़ने नहीं देगा । यदि तू पढ़ना ही चाहता है तो श्रावस्ती जा । वहाँ तेरे पिता के मित्र इन्द्रदत्त उपाध्याय रहते हैं, वे तुझे अवश्य पढ़ा देंगे।" ____मां की प्रेरणा से कपिल श्रावस्ती गया । वहाँ इन्द्रदत्त उपाध्याय के घर पहुँचा । अपना परिचय देकर कपिल ने उपाध्याय इन्द्रदत्त को प्रणाम किया और पढ़ने की इच्छा व्यक्त की। पण्डित ,, इन्द्रदत्त ने अपने मित्र पुत्र से मिल कर बड़ी प्रसन्नता प्रकट की, और उसे पढ़ने की स्वीकृति दी। इन्द्रदत्त ने शालिभद्र नामक एक धनी के घर उसके भोजन की च्यवस्था कर दी । शालिभद्र के घर की एक दासी कपिल की देखरेख करती थी। धीरे धीरे दोनों में प्रेम हो गया । उसके साथ भोग भोगते उस दासी को गर्भ रह गया । कपिल अब पढ़ना लिखना भूल गया । अब उसके सामने आजीविका का सब से बड़ा प्रश्न उपस्थित हुआ । ज्यों ज्यों समय बीतता त्यो त्यो दासी का प्रसव काल समीप आता जाता था। एक दिन दासी ने कहा-"कपिल ! अब मेरा प्रस: वकाल समीप आ रहा है कुछ धन की व्यवस्था करो । कपिल ने कहा-"मै धन कहाँ से लाऊँ ?" दासी ने कहा-"यहाँ के राजा को जो प्रातः प्रथम आर्शीवाद देता है उसे वह दो मासे सोना देता है। यदि तुम वहाँ जा सको तो तुम्हें भी दो मासे सोना मिल सकता है। यह बात कपिल की समझ में आ गई।" दूसरे दिन कपिल आधी रात को ही उठा और राजा को आशीर्वाद देने चल पड़ा । मार्ग में कोतवाल ने चोर समझ कर उसे पकड़ लिया। प्रातः राजा की सभा में उसे उपस्थित किया । कपिल ने सब बातें सच सच कह दी । कपिल की सत्यवादिता पर राजा बड़ा प्रसन्न हुभा और बोला-'कपिल ! तुम जो चाहो, मुझसे मांगलो !" मैं तुम पर अत्यन्त संतुष्ट हुआ हूँ।'
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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