SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 515
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम के अनमोल रत्न ४८१ २४ वर्ष गृहस्थ जीवन में रहने के बाद पुन: दीक्षा के लिये राजगृह पहुँचे। मार्ग में पांचसौ सुभट भी आकर मिल गये आईक ने उन्हें भी प्रत्रजित कर लिया । राजगृह पहुँचने के बाद वहां के अन्य मतावलम्बी धर्माचार्यों से चर्चा की।बुद्ध से भी चर्चा की। उसने सब को उत्तर देकर चुप कर दिया । जव आईक कुमार भगवान के समवशरण में जा रहे थे तब मार्ग में एक उन्मत्त हाथी मिला । आईककुमार के तेज से वह शान्त हो गया । जव इस घटना का पता राजा श्रेणिक को चला तो वह भी भाईक मुनि के पास आया और वन्दना कर उनके तप तेज की प्रशंसा की। आईक मुनि अपने पांचसौ साथियों के साथ भगवान के पास भाये और विधिपूर्वक चारित्र ग्रहण कर आत्म साधना करने लगे । अन्ततः इन्होंने केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया । कपिल मुनि कोशावी नगरी में जितशत्रु नाम का राजा राज्य करता था । काश्यप ब्राह्मण उसका पुरोहित था । वह चतुर्दश विद्याओं में पारंगत था । राजा उसका सम्मान करता था । पुरोहित की पत्नी का नाम यशा था। उसके एक पुत्र हुआ, जिसका नाम कपिल रखा । कपिल जब छोटा था तो उसका पिता परलोक सिधार गया । काश्यप का पद किसी अन्य ब्राह्मण को मिल गया । जब यह ब्राह्मण घोड़े पर बैठ कर छत्र लगाकर अपने नौकरों चाकरों के साथ निकलता तो कपिल की मां यशा को बढ़ा दुःख लगता और वह अपने बीते हुए दिनों की याद कर रोने लगती। कपिल पूछता तो वह कहती, "बेटा! कभी तेरे पिता भी इसी तरह घोड़े पर सवार हो कर जाते थे। उस समय मैं गर्व से फूली नहीं समाती थी।" कपिल ने कहा, "मां, क्या मैं अपने पिता की पदवी को नहीं पा सकता ?" उसकी मां ने कहा-"बेटा, तू अवश्य उस पदनी को पा सकता है, परन्तु
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy