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________________ ४६८ आगम के अनमोल रत्न उसने सोचा अब मैं सुषुमा को उठाकर जल्दी-जल्दी नहीं चल सकता अगर मेरी चलने की यही स्थिति रही तो मैं अवश्य पकड़ा जाऊँगा । उसने उसी क्षण तलवार हाथ में ले ली और एक झटका में सुषुमा का सिर उसके धड़ से अलग कर दिया । सिर को हाथ में लिये चिलात बड़ी तेजीसे भागा और एक झाड़ी में जाकर छिप गया । वहाँ पानी नहीं मिलने से उसकी मृत्यु होगई । धन्ना सार्थवाह और उसके पांच पुत्र चिलात चोर के पीछे दौड़ते-दौड़ते थक गये और भूख प्यास से व्याकुल होकर वापिस लौटे । रास्ते में पड़े हुए सुषुमा के मृत शरीर को देखकर वे 'अत्यन्त शोक करने लगे । वे सब लोग भूख और प्योस से घबराने लगे तब धनासार्थवाह ने अपने पांचों पुत्रों से कहा कि मुझे मार डालो और मेरे मांस से भूख को और खून से तृषा को शान्त कर राजगृह नगर में पहुँच जाओ। यह बात उन पुत्रों ने स्वीकार नहीं की। वे कहने लगे-आप हमारे पिता हैं । हम आपको कैसे मार सकते है ! तब कोई दूसरा उपाय न देख कर पिता ने कहा कि सुषुमा तो मर चुकी है । क्यों नहीं इसी के मांस और रुधिर से भूख और प्यास को शान्त किया जाय । सभी पुत्रों को पिता की यह राय अच्छी लगी। उन्होंने मृत पुत्री के मांस और रक्त से अपनी भूख और प्यास शान्त की ।* इसके बाद दुःख से संतप्त हृदयवाले वे सब लोग राजगृह लौट आये। एक समय श्रमण भगवान महावीर राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में पधारे । धर्मोपदेश सुनकर धन्नासार्थवाह को वैराग्य उत्पन्न हो गया । उसने भगवान के पास दीक्षा ग्रहण की । कई वर्ष तक संयम पालन कर सौधर्म देवलोक में उत्पन्न हुआ। वहां से चवकर वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा और सिद्धपद प्राप्त करेगा। ___ *इस कथन से प्रकट होता है कि धन्नासार्थवाह जैन नहीं था। फिर भगवान. महावीर के उपदेश- से जैन साधु. बनकर सुगति को प्राप्त हुआ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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