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________________ आगम के अनमोल रत्न ४६७ - में चोर विद्या में निपुण हो गया । उसने चिलात को चोर सेनापति नियुक्त किया । कुछ समय के बाद विजय चोर की मृत्यु हो गई । एक समय उस चिलात चोर सेनापति ने अपने पांच सौ चोरों से कहा कि चलो - राजगृह नगर में चल कर धन्ना (धन्य) सार्थवाह के घर को लूटें । लूट में जो धन आवे वह सब तुम रख लेना और सेठ की, पुत्री सुषुमा बालिका को मै रखूँगा । ऐसा विचार कर उन्होंने धन्नासार्थवाह के घर डाका डाला । बहुत सा धन और सुषुमा वालिका को लेकर वे चोर भाग गये । + चोरों के चले जानेके बाद धना कोतवाल के पास पहुँचा और बहुत सा धन देकर बोला-चिलात चोर ने मेरा घर लूट लिया है। और मेरी पुत्री सुषमा को भी उठाकर ले गया है । तब उस कोतवाल ने अपने चुने हुए साथियों को लेकर धन्नासार्थवाह और उसके पुत्रों के साथ चिलात चोर का पीछा पकड़ा। भागते हुए चोर सेनापति चिलात को कोतवाल ने मार्ग में ही घेर लिया और उसके साथ युद्ध करने लगा। कोतवाल के भयंकर आक्रमण से पराजित होकर चोर धन दौलत छोड़कर भाग गये। अपने साथी चोरों को इधर उधर भागते हुए देखकर वह घबरा गया व युद्ध का मैदान छोड़कर सुषुमा को कन्धे पर उठाये वन की भयंकर झाड़ो में भाग गया। कोतवाल धन सोना चाँदी आदि एकत्र कर अपने साथियों के साथ राजगृह की ओर चल पड़ा । धन्ना ने चिलात को सुषुमा के साथ जंगल की ओर भागते हुए देख लिया था । उसने अपने पुत्रों के साथ शस्त्र सज्ज होकर चिलात का पीछा पकड़ा | चित्रात सुषुमा को उठाये हुए भागे आगे जा रहा था और घन्ना उसके पीछे पीछे । कुछ दूर पहुँचने के बाद चिलात अत्यन्त थक गया। जोरों की प्यास लग रही थी । शरीर लड़खड़ाता था । धन्ना सार्थवाह अपने पुत्रों के साथ बड़ी तेजी के साथ भागता हुआ आ रहा था । 1
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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