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________________ आगम के अनमोल रत्न विचारों की उच्चतम अवस्था के कारण उन्होंने चार घनघाती कर्मों को नष्ट कर दिया। केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त कर वे भगवान के समवशरण में पहुँच गये। बहुत बर्षों तक केवली पर्याय में रहकर भन्त में मोक्ष प्राप्त किया । पुण्डरीक-कण्डरीक ___ पूर्व महाविदेह के पुष्कलावती विजय में पुण्डरीकिनी नामक नगरी थी। उस नगरी में महापद्म नाम के राजा राज्य करते थे। उसकी रानी का नाम पद्मावती था । महापद्म राजा के पुत्र और पद्मावती देवी के आत्मज पुण्डरीक और कण्डरीक नामके दो कुमार थे । वे बड़े सुन्दर थे । उनमें पुण्डरीक युवराज था । एक समय धर्मघोष स्थविर पांचसौ अनगारों के साथ परिवृत होकर प्रामानुग्राम विचरण करते हुए पुण्डरीकिनी नगरी के नलिनीवन नामके उद्यान में पधारे। महापद्मराजा स्थविरमुनि को वन्दन करने निकला। उपदेश सुनकर उसने पुण्डरीक को राज्य पर स्थापित करके दीक्षा अंगीकार करली। अब पुण्डरीक राजा और कण्डरीक युवराज होगया। महापद्म अनगार ने चौदह पूर्व का अध्ययन किया और वहुत वर्षों तक श्रमण पर्याय का पालन कर सिद्धि प्राप्त की। एक वार स्थविर मुनि पुन पुण्डरीकिनी राजधानी के नलिनीवन उद्यान में पधारे । महाराजा पुण्डरीक और युवराज कण्डरीक स्थविर मुनि के उपदेश सुनने के लिये उनके पास गये। वाणी श्रवणकर पुण्डरीक राजा ने श्रावक के बारह व्रत धारण किये और युवराज कण्डरीक ने दीक्षा ग्रहण करली । कण्डरीक मुनि स्थविरों के साथ प्रामानुग्राम विहार करने लगे । स्वयिरों के पास रहकर कण्डरीकमुनि ने ग्यारह अंग सूत्रों का अध्ययन किया । कण्डरीक अनगार अंत, प्रांत, तुच्छ, अरस, विरस, शीत, उष्ण एवं कालातिकान्त आहार करते, जिससे उनके शरीर में सूखी खुजली और दाहज्वर होगया । इससे उनका शरीर सूख गया ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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