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________________ आगम के अनमोल रत्न ४३७ - वृत्तान्त कहा । गर्भकाल पूर्ण होने पर स्वप्न के अनुसार उसने एक पुण्यशाली पुत्र को जन्म दिया । बालक का नाम सुमुख रखा गया । यौवन अवस्था प्राप्त होने पर उस कुमार का विवाह पचास कन्याभों 'के साथ हुआ और विवाह में कन्याओं के माता पिता की तरफ से पचास पचास करोड़ सौनेया आदि दहेज मिला । एक समय अरिष्टनेमि द्वारिका पधारे। उस समय उनका उपदेश सुनकर सुमुखकुमार ने दीक्षा अंगीकार की। दीक्षा लेकर चौदह पूर्व का अध्ययन किया और वीस वर्ष पर्यन्त चारित्र पर्याय का पालन किया। अन्त में शत्रुञ्जय पर्वत पर संथारा करके सिद्धपद प्राप्त किया । सारणकुमार द्वारवती नगरी में कृष्णवासुदेव राज्य करते थे । वहाँ वसुदेव नाम के राजा रहते थे। उन की धारिणी नामकी रानी थो । एक दिन उसने रात्रि में सिंह का स्वप्न देखा । गर्भ का समय पूर्ण होने पर उसने एक पुत्र रत्न को जन्म दिया । जिसका नाम सारणकुमार रखा गया। सारणकुमार ने बहत्तर कलाओं का अध्ययन किया । युवावस्था में उसका विवाह पचास राजकन्याओं के साथ हुआ । पचास करोड़ सोनैया आदि का दहेज मिला । भगवान अरिष्टनेमि का उपदेश सुनकर सारण कुमार ने भगवान के पास दीक्षा ग्रहण की। उसने चौदह पूर्व का अध्ययन किया, कठोर तप किया और बीस वर्ष दीक्षा पर्याय पाला। अन्त में शत्रुजय पर्वत पर जाकर एक मास की सलेखना की । चरम उश्वास में केवलज्ञान प्राप्त कर सिद्ध हुए। दुर्मुख, कूपदारक, दारुक और अनादृष्टि दुर्मुख और कूपदारक ये दोनों कुमार सुमुख कुमार के सहोदर भाई थे । इनके पिता बलदेव और माता धारिणी थी । इन दोनों कुमारों का पचास पचास राजकन्याओं के साथ विवाह हुआ । भगवान अरिष्टनेमि का उपदेश सुनकर इन्होंने प्रव्रज्या ग्रहण की । चौदह पूर्व
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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