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________________ ४३६ आगम के अनमोल रत्न मन्त्री ने उग्रसेन को बचाकर चतुरता से धारिणी का दोदद पूर्ण किया । नौ माह के बाद धारिणी ने पुत्र को जन्म दिया । राजा ने अपने नाम की मुद्रा पहनाकर एक कांस्य पेटी में उसे बन्द वर यमुना में बहा दिया । वह पेटी पानी में बहते बहते शौर्यपुर पहुँची।। वहाँ शौचाथ आये हुए सुभद्र नाम के श्रेष्ठी ने उस पेटी को निकाला । श्रेष्ठी पेटी को घर ले आया । उसमें वह बालक मिला ।.बालक कास्य. पेटी में प्राप्त होने से उसका नाम कंस रखा । कंस स्वाभाव से उद्दण्ड था। माता पिता ने कंस को वसुदेव के कुमारों की सेवा के लिये वसुदेवा राजा को सौंप दिया । कंस ने अपने वीरत्व का परिचय दे राजगृह के राजा जरासंध की पुत्री जीवयशा के साथ विवाह किया । बाद में जरासन्ध की सैन्य सहायता से उसने मथुरा पर चढ़ाई कर दी। पिता को कैद में डालकर वह मथुरा पर राज्य करने लगा। उसका छोटा भाई अतिमुक्तक कुमार था। उसने पिता के दुःख से दुःखी हो प्रव्रज्या धारण कर ली । एक समय जीवयशा के बहुत सताने पर अतिमुक्तक अनगार ने वसुदेव की पत्नी देवकी के सातवें पुत्र से कस के मारे जाने का. भविष्य कथन किया था । कंस ने यह जानकर वसुदेव को देवकी के साथ कारागार में डाल दिया । देवकी की छहों मृत संतानों को कंस ने मार डाला । सातवें पुत्र को वसुदेव अपने मित्र नन्द के यहाँ रख आये । सातवाँ पुत्र कृष्ण था जिसने कंस का वध कर अपने माता पिता और उग्रसेन को मुक्त किया । अतिमुक्तक मुनि ने कठोरतम तप किया और अन्त में सिद्धि प्राप्त की सुमुखकुमार द्वारिका नगरी में वलदेव नाम के राजा थे। उनकी धारिणी रानी थी। वह सुन्दर थी उसने एक दिन सिंह का स्वप्न देखा । ,स्वप्न देखते ही जागृत होकर उसने अपने पति के समीप जाकर स्वप्न का
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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