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________________ आगम के अनमोल रत्न ४०७ व्यथा की सीमा न रही । वह बुरी तरह छटपटाने लगी। जीते जी मृत्यु की दारुण यातनाएँ भुगतने लगी। ____ अन्त में मलिन और कलुषित परिणामों से आर्तध्यान से पीड़ित होकर नागश्री ने शरीर का परित्याग क्यिा और भरकर छठे नरक में उत्पन्न हुई। वहाँ उसने वाइस सागरोपम तक दारुण वेदनाएँ सहन की। बाईस सागरोपम तक नारकीय यंत्रणाएँ सहन करने के बाद नागश्री का जीव मत्स्य योनि में उत्पन्न हुआ। वहाँ शस्त्र और दाह पीड़ा से मरकर सांतवीं नरक में उत्पन्न हुई। वहाँ की आयु पूरी कर वह पुन: मत्स्य योनि में उत्पन्न हुई। वहाँ भी वह शस्त्र द्वारा मारी गई और पुन: छठी नरक में उसने जन्म ग्रहण किया । इस प्रकार सातवे से लेकर पहले नरक तक बीच बीच में एक एक वार तिर्यञ्च योनि में जन्म लेकर दो दो बार प्रत्येक नरक में उत्पन्न हुई। स्थाचर और द्वीन्द्रिय आदि विकलेन्द्रिय जीवों की योनि में अनेकानेक जन्म ग्रहण किये और जन्म मरण की यातनाएँ सहन की। ( नागधी के आगे के भव के लिए देखिये साध्वी सुकुमालिका) थावच्चा पुत्र अनगार प्राचीन काल में द्वारवती नाम की नगरी थी । वह पूर्व पश्चिम में वारह योजन लम्बी और उत्तर दक्षिण में नौ योजन चौड़ी थी। वह कुबेर की बुद्धि से निर्मित हुई थी। सुवर्ण के श्रेष्ठ प्राकार से और पंचरंगी नाना मणियों के बने कगूगे से शोभित थी। वह अलकापुरी के समान जान पडती थी। वहां के लोग बड़े सुखी और समृद्ध थे । इस नगरी के ईशान कोण में रैवतक पर्वत था । इस पर्वत के समीप ही नन्दनवन नाम का उद्यान था। वह फल फूलों और विविध वृक्ष लताओं से सुशोमित था। नगर की जनता वहाँ आकर आमोद प्रमोद करती थी। तीन खण्ड के अधिपति वासुदेव कृष्ण वहाँ निवास करते थे। समुद्रविजय आदि दश दशारों, बलदेव आदि पाच महावीरों, उग्रसेन आदि सोलह हजार राजाओं, प्रद्युम्न आदि साडेतीन करोड़ कुमारों,
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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