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________________ ४०६ आगम के अनमोल रत्न कर दिया। वह मरकर के सर्वार्थसिद्ध विमान में देवरूप से उत्पन्न हुआ है। वहाँ तेतीस सागरोपम तक रहकर पश्चात् महाविदेह क्षेत्र में सिद्धि प्राप्त करेगा। हे आर्यो ! "उस जघन्य, अपुण्य और निवोली के समान कड़वी नागश्री को धिकार है । उसने मासोपवासी धर्मरूचि को विषमय तुम्बा वहरा कर मार डाला है।" धर्मघोष स्थविर के मुख से यह वृत्तान्त सुन कर श्रमण निर्गन्ध चम्पा के राजमार्ग पर आये और लोगों से इस प्रकार कहने लगेधिक्कार है उस नागश्री ब्राह्मणी को, जिसने धर्मरुचि अनगार को विषमय तुम्बा खिलाकर असमय में मार डाला है। श्रमणों के मुख से यह सुनकर नगरी के अन्य लोग भी नागश्री को धिक्कारने लगे। धीरे धीरे यह बात ब्राह्मणों के कानों तक पहुंची। नागश्री के इस भयानक कृत्य से तीनों ब्राह्मण अत्यन्त कुपित हुए। उन्होंने नागश्री को खूब धिक्कारा और उसे ताड़ना, तना कर घर से बाहर निकाल दिया। घर छोड़ने में नागश्री को अतिशय पीड़ा हुई। अभीतक वह एक प्रतिष्ठित परिवार की संभ्रान्त कुलवधू थी, अब दर-दर भटकने लगी। घर पर मिलने वाले सुखों का स्मरण करके वह संताप और पश्चाताप की ज्वालाओं में झुलसने लगी, वह जहाँ कहीं जाती, धृणापूर्वक दुरदुराई जाती। लोग उसका मुँह देखने में भी अमंगल समझने लगे। सड़ी कुतिया को जैसे कोई विश्राम नहीं लेने देता, उसी प्रकार नागश्री को भी कोई अपने घर के सामने नहीं ठहरने देता था । भूख-प्यास तिरस्कार और लांछना से पीड़ित नागश्री दिनों-दिन निर्बल और कृश होने लगी । अन्त में उसे खांसी, दाह, योनिशुल आदि भयंकर रोगों ने प्रस लिया । मिट्टी के ठीकरे में भीख मांगने पर भी उसे भरपेट भीख न मिलती थी । इन सब दुस्सह दुःखों के कारण नागश्री को
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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