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________________ ૨૮૮ आगम के अनमोल रत्न एक दिन वररुचि फल फूल लेकर शकडाल की स्त्री के पास पहुँचा और कहने लगा कि भाभी, तुम्हारे पति द्वारा मेरे श्लोकों की प्रशंसा न होने के कारण मै दान से वंचित रहता हूँ । शकडाल की स्त्री ने अपने पति से कहा । उसने उत्तर दिया, कि मै झूठी प्रशंसा कैसे करूँ ? लेकिन बहुत कहने-सुनने पर डाल वररुचि के श्लोकों की प्रशंसा करने लगा और उसे प्रतिदिन आठ सौ दिनारे मिलने लगीं। एक दिन शकडाल ने सोचा, इस तरह तो राजकोष बहुत जल्दी खाली हो जायगा । उसने नन्द' राजा से कहा-राजन् , आप इसे इतना द्रव्य क्यों देते हैं ? नन्द ने उत्तर दिया-तुम्हीं ने तो कहा है कि उसके लोक बहुत सुन्दर हैं। शकडाल ने कहा, महाराज! यह लौकिक काव्य को अच्छी तरह पढ़ता है, अतएव मैं इसके लोंकों की प्रशंसा करता हूँ। राजा ने कहा-"क्या इसके श्लोक लौकिक हैं !" शकडाल ने उत्तर दिया "इन श्लोकों को मेरी लड़कियाँ तक जानती हैं ।" तब महाराज ने शकडाल से कहा अगर यह बात सच है तो इसका निर्णय कल ही राजसमा में होना चाहिये । दूसरे दिन नियमानुसार वररुचि राजा की प्रशंसा में नये श्लोक बनाकर लाया । शकडाल की सातों कन्यायें परदे के भीतर बैठ गई, वररुचि ने लोक पढ़ना शुरू कर दिया और सातों कन्याओं ने उन्हें सुनकर ज्यों का त्यों याद कर लिया । वररुचि के श्लोक पढ़ लेने के बाद शकडाल मंत्री ने वररुचि से कहा, ब्राह्मण तुम्हारे काव्य पुराने हैं । पुराने काव्य राजसभा में बार-बार न पढ़े जायें । वररुचि ने कहा-कौन कहता है कि मेरे काव्य पुराने हैं ? शकडाल ने कहापंडितवर वररुचि ! मैं कहता हूँ। ये काव्य मेरे सुने हुए हैं और पुराने हैं। मैं तो क्या, मेरी सातों पुत्रियाँ भी आपके पड़े हुए काव्य को भच्छी तरह सुना सकती हैं। मंत्रीराज शकडाल ने मानो कोई गम्भीर बात न हो इस ढंग से उत्तर दिया ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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