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________________ ३८६ आगम के अनमोल रत्न भद्रबाहु ने अपने जीवन के ४५वे वर्ष में दीक्षा ग्रहण की। ६२वें वर्ष में युगप्रधान पद पर प्रतिष्ठित हुए । कुल ७६ वर्ष की आयु में वीर सं. १७० वर्ष में स्वर्गवासी हुए। एक मान्यता के अनुसार इन्होंने दस सूत्रों पर नियुक्तियाँ लिखी हैं। वे इस प्रकार हैं आवश्यक नियुकि ऋषिभाषित दशवकालिक व्यवहारसूत्र मूल उत्तराध्ययन दशाश्रुतस्कन्ध मूल आचाराङ्ग पंचकल्प मूल सूत्रकृताङ्ग बृहद्रकल्प मूल दशाश्रुतस्कन्ध पिण्डनियुकि बृहद्कल्पसूत्र 'ओघनियुक्ति व्यवहार सूत्र पर्युषणा कल्पनियुक्ति सूर्यप्रज्ञप्ति संसक नियुक्ति उबसग्गहरस्तोत्र वसुदेवरियम् (अनुपलब्ध) . भद्रबाहु संहिता " __५. स्थूलिभद्राचार्य मंगलं भगवानवीरो मंगलं गौतमः प्रभुः । मंगलं स्थूलिभद्राद्या, जैन धर्मोऽस्तु मंगलम् ॥ ऊपरलिखे मंगलाचरण में भगवान महावीर और गौतम के बाद तृतीय मंगल के रूप में आचार्य स्थूलिभद्र का उल्लेख किया है इसीसे उनकी प्रतिष्ठा का अनुमान किया जा सकता है। ये जैन जगत के उज्ज्वल नक्षत्र थे जिसकी प्रभा से जनजीवन आज भी आलोकित है। ये आचार्य भद्रबाहु के पट्टधर थे। जिनकी परिचय गाथा इस प्रकार है गंगा और शौन नदी का निर्मलनीर मिलकर पीछे हटता है ऐसे पाटलीपुत्र नगर में महापद्म नाम का नौवां नन्द राज्य करता था।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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