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________________ वासुदेव और वलदेव ३४७ से राम पहले से ही खिन्न हो रहे थे । सीता की कठिन प्रतिज्ञा सुन कर वे और भी अधिक खिन्न हुए। राम के पास अन्य कोई उपाय नहीं था । वे विवश थे। उन्होंने एक अग्नि का कुण्ड बनवाया । इस दृश्य को देखने के लिये अनेक सुर नर वहाँ इकट्ठे हुए और उत्सुकता पूर्ण नेत्रों से सीता की ओर देखने लगे । अग्नि अपना प्रचण्ड रूप धारण कर चुकी थी । उस समय सीता अग्नि कुण्ड के पास आकर बोली-“मन वचन काया से, जागते समय या स्वप्न में यदि रामचन्द्रजी को छोड़कर किसी दूसरे पुरुष में मेरा पतिभाव हुआ हो तो हे अग्नि 1 तुम इस पापी शरीर को जला डालो । सदाचार और दुराचार के लिये इस समय तुम्ही साक्षी हो।" : . ऐसा कहकर सीता उस अग्निकुण्ड में कूद पड़ी। तत्काल अग्नि वुझकर वह कुण्ड जल से भर गया । शीलरक्षक देवों ने जल में कमल पर सिंहासन बना दिया और सती सीता उस पर बैठी हुई दिखने लगी । यह दृश्य देखकर लोगों के हर्ष का ठिकाना न रहा । सती के जयनाद से आकाश गूंज उठा। देवताओं ने सती पर पुप्प वृष्टि की। उस समय चार ज्ञान के धारक मुनि पधारे । उन्होंने सतो सीता का पूर्व जन्म कह सुनाया । अपने पूर्व भव का वृत्तान्त सुनकर सीता को संसार से विरक्ति होगई । उसी समय राम की आज्ञा लेकर उसने दीक्षा अंगीकार कर ली। कई वर्षों तक संयम का पालन करती रही। अन्तिम समय में संथारा कर मरी और बारहवें देवलोक में इन्द्र बनी वहाँ से चक्कर कई भव करके मोक्ष प्राप्त करेगी। कुछ काल के बाद लक्ष्मण वासुदेव की मृत्यु हो गई । लक्ष्मण की मृत्यु से राम को बड़ा आघात लगा । वे लम्बे समय तक लक्ष्मण के शोक में व्याकुल रहे । अन्त में देवद्वारा प्रतिवाधित हो उन्होंने सोलह हजार राजाओं के साथ मुनिसुव्रत के समीप दीक्षा ग्रहण की। गुरु के चरणों में रहकर पूर्वात श्रुत का अभ्यास करते हुए राम ने
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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