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________________ ३४६ आगम के अनमोल रत्न ' होकर राम को सेना अपने प्राण लेकर भागने लगी। अपनी सेना कोभागते देख लक्ष्मण स्वयं सामने आये और लव कुश पर बाण वर्षा करने लगे । लव, कुश - लक्ष्मण के बाणों को बीच ही में काट देते थे । शत्रु पर फेके सब शस्त्रों को निष्फल जाते देख कर लक्ष्मण ने शत्रु का सिर काटकर लाने के लिये चक्र फेका । चक्र लव, कुश के पास आकर उनकी प्रदक्षिणा देकर वापस लौट आया । अब तो राम, लक्ष्मण की निराशा का ठिकाना न रहा । वे दोनों उदास होकर बैठ गये । उसी समय नारद मुनि वहाँ आ पहुँचे । राम, लक्ष्मण को उदास बैठे देखकर वे कहने लगे - राजन् ! आप जिनके साथ युद्ध कर रहे हैं वे. दोनों वीर बालक माता सीता के पुत्र हैं। चक्र ने भी इस बात की सूचना दी है क्योंकि वह स्वगोत्री पर नहीं चलता । 1 नारदजी की बात सुनकर राम, लक्ष्मण के हर्ष का पारावार न रहा । वे अपने वीर पुत्रों से भेट करने के लिये आतुरता पूर्वक उनकी तरफ चले | लव कुश के पास आकर नारद जी ने यह सारा वृत्तान्त कहा। उन्होंने अपने अस्त्र-शस्त्र नीचे डाल दिये और आगे बढ़कर सामने आते हुए राम लक्ष्मण के चरणों में सिर नमाया । उन्होंने भी प्रेमालिंगन कर आशीर्वाद दिया । अपने वीर पुत्रों को देखकर उन्हें अति हर्ष हुआ । इसके बाद राम ने लक्ष्मण को सीता को लाने की आज्ञा दी। सीता के पास जाकर लक्ष्मण ने चरणों में नमस्कार किया और अयोध्या चलने की प्रार्थना की। सीता ने कहा- वत्स ! अयोध्या चलने में मुझे कोई एतराज नहीं है किन्तु जिस लोक अपवाद से डर कर राम ने मेरा त्याग किया था वह तो ज्यों का त्यों बना रहेगा इसलिये मैने यह प्रतिज्ञा की है कि अपने सतीत्व की परीक्षा देकर ही मैं अयोध्या में प्रवेश करूँगी । राम के पास आकर लक्ष्मण ने सीता की प्रतिज्ञा कह सुनाई । सती सीता को निष्कारण वन में छोड़ देने के कारण होने वाले पश्चाताप
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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