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________________ ३३६ आगम के अनमोल रत्न कूटना शुरू हो गया । अंगरक्षकों सहित सामन्त राजा वहाँ दौड आये और राजा की उत्तर क्रिया की । दशरथ राजा को मरा समझ विभीषण लंका लौट आया । . महाराज दशरथ गुप्त रूप से फिरते हुए उत्तरापथ में पहुँचे । वहाँ कौतुकमंगल नगर के राजा की शुभमती रानी के उदर से जन्मी हुई द्रोणमेघ की बहन, ६४ कला में कुशल कैकयी कन्या का स्वयंवर था । वे भी स्वयंवर मण्डप में जाकर बैठ गये। कैकयी दशरथ के सौन्दर्य को देख कर मुग्ध हो गई। वह दशरथ के पास पहुँच गई और उसने उनके गले में वर माला डाल दी । यह देख कर अन्य राजाओं को बहुत बुरा लगा । वे दशरथ के साथ युद्ध के लिए तैयार हो गये। उस समय एकाकी दशरथ ने कैकयी से कहा-"प्रिये ! यदि तू सारथी बने तो मै इन शत्रुओं को मार डालें"। कैकयी ने स्वीकार कर लिया। उसने रथ की बागडोर अपने हाथ में ले ली । राजा दशरथ भी कवच पहिन भाता गले में डाल, धनुष हाथ में ले, रथ में सवार हो गया । कैकयी के उत्तम रथ संचालन से दशरथ ने एक एक शत्रु को युद्ध मैदान में परास्त कर भगा दिया । दशरथ के रण कौशल की सर्वत्र प्रशंसा होने लगी। दशरथ ने कैकयी के साथ विवाह किया फिर वोर दशरथ ने कैकयी से कहा-"प्रिये ! मै तेरे सारथिपन से प्रसन्न हुआ हूँ, इसलिये कुछ वरदान मांग।" - कैकयी ने उत्तर दिया-"स्वामी ! अवसर आने पर वरदान मागूंगी। भाप इसको घरोहर की भांति अपने पास रखिए।" राजा ने स्वीकार किया। फिर शत्रुओं से जीती हुई सेनाओं को साथ ले वे राजगृह आये और वहाँ के राजा को जीत कर वहीं राज्य करने लगे। उन्होंने अपनी राजधानी साकेत से अन्य रानियों को भी बुला लिया । राजा का जीवन सुखमय बीतने लगा।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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