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________________ आगम के अनमोल रत्न पिला दिया जाय। फिर उस एक गाय का दूध निकाल कर उत्तम जाति के चावल डाल कर खीर बनाई जाय और उत्तमोत्तम पदार्थ डालकर उसे संस्कारित किया जाय । ऐसी खीर का भोजन कल्याण भोजन कहलाता है। चक्रवर्ती और उसकी पटरानी के अतिरिक्त यदि . दूसरा कोई व्यक्ति उस खीर का भोजन कर ले तो वह उसको पचा नहीं सकता और उससे उसको महान् उन्माद पैदा हो जाता है। चक्रवर्ती का काकिणीरत्न प्रत्येक चक्रवर्ती के पास एक एक काकिणी रत्न होता है। वह अष्टसुवर्ण परिमाण होता है। सुवर्ण परिमाण इस प्रकार बताया गया है-चार कोमल तृणों की एक सफेद सरसों होती है। सोलह सफेद सरसों का एक धान्यमाषफल कहलाता है। दो धान्यमासफलों की एक गुच्छा (चिरमी) होती है। पांच गुजाओं (चिरमियों) का एक कर्ममाष होता है और सोलह कर्ममाषों का एक सुवर्ण होता है । सब चक्रवर्तियों के काकिणी रत्नों का परिमाण एक समान होता है । वह रत्न छः खण्ड, बारह कोटि (धार) तथा आठ कोण वाला होता है। इसका आकार लुहार के एरण सरीखा होता है। भरत के बाद क्रमशः आठ युग प्रधान राजाओं ने मोक्ष प्राप्त किया था। वे आठ राजा ये हैं १ आदित्ययश २ महायश ३ अतिबल ४ महावल ५ तेजोवीर्य ६ कार्तवीर्य ७ दण्डवीर्य ८ जलवीर्य आगामी उत्सर्पिणी के चक्रवर्ती . निम्न लिखित चक्रवर्ती आगामी उत्सर्पिणी में होंगे (१) भरत (२) दीर्घदन्त (३) गूढदन्त (४) शुद्धदन्त (५) श्रीपुत्र (६) श्रीभूति (७) श्रीसोम (८) पद्म (९) महापद्म (१०) विमलवाहन (११) विपुलवाहन (१२) अरिष्ट ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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