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________________ ३०० आगम के अनमोल रत्न www wwwwwwwww एक दिन स्नानादि कर वस्त्राभूषणों से अलंकृत हो भरत महाराज आदर्श भवन (शीश महल) में गये। महल में जाकर रत्न सिंहासन पर आरूढ़ हुए । दर्पण में अपने रूप सौंदर्य को देखने लगे । अचानक उनके एक हाथ की अंगुली में से अँगूठी नीचे गिर पड़ी। दूसरी अंगुलियों की अपेक्षा वह असुन्दर मालूम होने लगी । भरत को विचार आया कि क्या इन बाहरी आभूषणों से ही मेरी शोभा है ? उन्होंने दूसरी अंगुलियों की अंगूठियों को भी उतार दिया और यहाँ तक कि मस्तक का मुकुट आदि सब आभूषण उतार दिये । पत्र रहित वृक्ष जिस प्रकार शोभाहीन हो जाता है उसी प्रकार वस्त्र और अलंकारों से रहित सारा शरीर असुन्दर लगने लगा । अपने शरीर की इस प्रकार अशोभा को देखकर महाराज विचारने लगे, "आभूषणों से ही शरीर की शोभा है । यह इसकी कृत्रिम शोभा है । इसका असली स्वरूप तो कुछ और ही है। यह अनित्य एवं गभ्वर है । मल मूत्रादि अशुचि 'पदार्थों का भण्डार है । इस अनित्य शरीर की शोभा बढ़ाने की अपेक्षा आत्मा की शोभा बढाना ही सर्वश्रेष्ठ है।'' इस प्रकार अनित्य भावना करते हुए भरत महाराज क्षपक श्रेणी में आरूढ़ हुए। चढ़ते हुए परिणामों की प्रबलता से घाती कर्मों का क्षय कर केवलज्ञान-केवलदर्शन प्राप्त किया। देवों ने भाकर भरत केवली को साधु के औघा मुंहपत्ती आदि उपकरण दिये । भरत केवली होकर पृथ्वी पर विचरने लगे । गृहस्थ लिंग में केवलज्ञान प्राप्त करने वाले आप प्रथम चक्रवर्ती थे । भरत केवली के साथ एक हजार राजाओं ने भी चारित्र ग्रहण किया। अन्त में ८१ लाख पूर्व की आयु समाप्त कर भरत केवली ने मोक्ष पद प्राप्त किया। २. सगर चक्रवर्ती विनीता नगरी में भगवान अजितनाथ के पिता जितशत्रु राजा के लघु भ्राता सुमित्रविजय थे । राजा सुमित्रविश्य की रानी का नाम वैजयन्ती अपर नाम यशोमती था। महारानी यशोमती ने एक रात्रि में
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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